About Me

दरिया व पहाड़ो की मस्ती मुझे विरासत में मिली है। गंगा किनारे बसे शहर बनारस के पास मिर्ज़ापुर ज़िले के एक गावं बरेवां से पुरखों ने इस सफ़र की शुरूआत की। जो बहते बहते पहुंच गए सोन नदी के किनारे बसे राबर्ट्सगंज में । फिर वो वहीं के होकर रह गए। लेकिन मैंने रूकना कभी सीखा नहीं। बहते रहना- मेरी फितरत है, फक़ीरों की तरह। गंगा सागर में मिलने से बेहतर युमना किनारे बसे शहर दिल्ली में धुनी रमाना बेहतर समझा। जीने के लिए कलम का सहारा लिया। ज़माने को बदलना है- इस जज़्बे के साथ जूते घिस घिस कर अख़बारों और पत्र पत्रिकाओं में कलम घिसने की ठानी । ज़माना बदला हो या नहीं- ये पता नहीं। लेकिन इन दो साल में मैं ज़रूर बदल गया हूँ । बदलाव की शुरूआत हुई - अख़बारों की दुनिया में कदम रखने से । इस पत्रकारिता की दुनिया ने बार बार हाथ झटक दिया। लेकिन अब मैं थोड़ा डीठ हो चुका हूं। ख़ाल मोटी होने लगी है । पत्रकारिता और मेरे बीच मियां - बीवी जैसा रिश्ता क़ायम होने लगा है । कोशिश कर रहा हूं नाग नागिन के इस दौर में सार्थक पत्रकारिता करने की। कौन कहता है कि आसमान में सुराख़ नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। बस हव्शाला बुलंद होने की देरी है

Monday, February 22, 2010

बांस की जीवन यात्रा


गभZ में मां से शिशु को जोड़ने वाली नाल को काटने के लिए हमारे पू्वZजों द्वारा बांस के बने चाकू का प्रयोग किया जाना आज भले ही हमें आश्चयZचकित करे लेकिन यह सच है कि मानव जन्म के उपरांत उपयोग किये जाने वाले पालने से लेकर अंतिम यात्रा में प्रयुक्त होने वाली अथीZ तक में बांस की प्रायोगिक महत्ता निर्विवाद है। ..विडंबना ही है कि बहुपयेगी होने के बावजूद जागरूकता के अभाव एवं व्यवसायिक उदासीनता के कारण बांस अब दिनों दिन कम होते जा रहे हैं। बांस घास परिवार का सबसे ऊंचा पौधा है। समस्त वनस्पतियों में सर्वाधिक तेजी से बढ़ने वाले बांस 40 मीटर तक ऊंचा हो जाते है। अन्य पौधों की अपेक्षा यह 30 प्रतिशत अधिक आक्सीजन का उत्सर्जन एवं कार्बनडाई आक्साइड को ग्रहण करते हैं। पीपल वृक्ष के मानिन्द बांस भी रात में ही आक्सीजन का उत्सर्जन करते है। ज्यादे तर बांस डेन्ड्रो कैलोमस स्टीपस प्रजाति के होते हैं जिन्हें हम जंगली बांस का नाम दिये हैं जिनका व्यवसायिक उपयोग काफी कम मात्रा में होता है। कहा जाता है कि लगभग 48 वर्ष के उपरांत जीवन में एक बार बांस में फूल खिलते हैं उसके उपरांत बांस की श्प्राकृतकि मृत्यु हो जाती है किन्तु इस दौरान बांस नवजीवन हेतु अपने बीजों को छोड़ जाते हैं। प्रकृति ने इनकी इतनी लम्बी जीवन यात्रा को देखते हुए इन्हें अपनी गांठों से गन्ने की तरह निकलने वाले कल्लों की सहायता से बढ़ते रहने का गुण भी प्रदान किया है। विदेशों में बांस के उपयोग के लिए नित्य नये रिसर्च किये जा रहे हैं। इसके सेलुलोस से वस्त्र एवं उम्दा किस्म की स्वास्थ्य वर्धक शराब तैयार की जा रही है वहीं हमारे देश में इसका उपयोग टोकरी एवं चटाई तक सीमित है जबकि बांस का विविध उपयोग कर हम अपनी बहुमूल्य काष्ट सम्पदा को संरक्षति कर सकते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि विभिन्न कार्यक्रम संचालित कर आदिवासियों एवं ग्रामीणों को तकनीकी दक्षता प्रदान की जाय। बांस के फर्नीचरों] डिजाइनर] क्राफ्ट] हेयर] क्लिप] ग्रीटिंग कार्ड आदि वस्तुओं के निर्माण को प्रोत्साहित किया जाय। बहरहाल आप यूपी के सोनभद्र जनपद के रेनूकूट से सड़क मार्ग द्वारा अनपरा की तरफ बढ़ें या फिर अनपरा से सड़क मार्ग द्वारा जिंगुरदह की ओर। लभरी के जंगल से लगायत जिंगुरदह की पठारी घाटियों में आपको बांस के प्राकृतकि जंगल का अभूतपूर्व नजारा दिखायी देगा। तबीयत खुश कर देने वाले 109] 33] 32] ]25 वर्ग किलोमीटर के टुकड़ों में बंटे यह जंगला आपको भौचक्का कर देने का माद्दा रखते हैं। ऊंचे पहाड़ों] घाटियों] सरोवरों] झरनों और कहीं-कहीं रिहंद सागर के लहलहाते समंदर के बीच छोटे-छोटे टापुओं पर आसमान की बुलंदी को छूते यह बांस के जंगल चमत्कृत कर देते हैं।

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