About Me

दरिया व पहाड़ो की मस्ती मुझे विरासत में मिली है। गंगा किनारे बसे शहर बनारस के पास मिर्ज़ापुर ज़िले के एक गावं बरेवां से पुरखों ने इस सफ़र की शुरूआत की। जो बहते बहते पहुंच गए सोन नदी के किनारे बसे राबर्ट्सगंज में । फिर वो वहीं के होकर रह गए। लेकिन मैंने रूकना कभी सीखा नहीं। बहते रहना- मेरी फितरत है, फक़ीरों की तरह। गंगा सागर में मिलने से बेहतर युमना किनारे बसे शहर दिल्ली में धुनी रमाना बेहतर समझा। जीने के लिए कलम का सहारा लिया। ज़माने को बदलना है- इस जज़्बे के साथ जूते घिस घिस कर अख़बारों और पत्र पत्रिकाओं में कलम घिसने की ठानी । ज़माना बदला हो या नहीं- ये पता नहीं। लेकिन इन दो साल में मैं ज़रूर बदल गया हूँ । बदलाव की शुरूआत हुई - अख़बारों की दुनिया में कदम रखने से । इस पत्रकारिता की दुनिया ने बार बार हाथ झटक दिया। लेकिन अब मैं थोड़ा डीठ हो चुका हूं। ख़ाल मोटी होने लगी है । पत्रकारिता और मेरे बीच मियां - बीवी जैसा रिश्ता क़ायम होने लगा है । कोशिश कर रहा हूं नाग नागिन के इस दौर में सार्थक पत्रकारिता करने की। कौन कहता है कि आसमान में सुराख़ नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। बस हव्शाला बुलंद होने की देरी है

Thursday, February 18, 2010

आधुनिकता की चकाचौध में जीवन के रंग

आज के परिदृय की तुलना अतीत से करें तो अतुलनीय परिवतZन देखने को मिलते है। वतZमान जीवन शैली से पता चलता है कि पिछले एक दाशक के दौरान हमने क्या-क्या पाया है। आधुनिकता के विकास में यह आसानी से देखने को मिल जाता है कि घर के कुछ सदस्य इंटरनेट पर सर्फिंग कर रहे हैं तो कुछ शापिंग मांल्स में मनपसंद सामान खोज रहे हैं। एक तरफ जहां मंदी से सभी देश जूझ रहे थे वहीं हिंदुस्तानी परिवार शान से लखटकिया कार खरीदकर सैर-सपाटे की प्लानिंग में वयस्त रहा । सूचना क्रांती ने इस तरह अपना जाल बिछाया कि संबंधों में जम कर खुला पन आ गया । विकास के दौर में थैरेपी इतनी आगे हो गइZ है कि कोइZ ऐसी बीमारी नहीं जिसका इलाज आज संभव न हो। बदलाव के इस बयार में बहने वालों की भरमार है तो वहीं खुशियां खोजने के लाखों बहानें।

वतZमान समय में हमारे समाज में ऐसे कारणों की भरमार है जिन्हों ने जीवन शैली को बदल कर रख दिया है जो निम्न है।

खुबसूरत दिखने की दिवानगी

पहले के समय में सुंदर दिखने की चाह लोगों में कुछ खास मौकों पर होती थी। लेकिन अब हर मौके पर कुछ खास दिखने की चाह ने लोगों को अपना दिवाना बना लिया है। पिछले एक दशक से खूबसूरत दिखने को लेकर जैसी दिवानगी देखी जा रही है वैसे पहले कभी भी नहीं देखी गइZ। खूबसूरत दिखने का दौर प्रमुख रूप से शुरू होता है नाक की कांस्मेटिक सजZरी कराने और तोंट घटाने से । सुंदरता को बढ़ाने के नाम पर बाजार में ऐसे कइZ ब्यूटी प्रांडक्ट उपलब्ध हैं जो लड़के-लड़कियों को गोरा और हांट-सैक्सी बनाने का दम भरने लगे हैं। आधुनिक समय में बैस्ट वकZ परफांमेZस के साथ अच्छी पसZनेलिटी और गुड लुक्स मैंटेन करना जरूरी कायोZ में शुमार हो गया है। जब हर तरफ ऐसा जोश हो कि उम्र भी धोखा खा जाए तो बुजुगZ भी समझौता क्यों करें । जनरेशन एस यानी सीनियर सिटीजंस ने भी इस मामले में बराबर की कदमताल ठोकी है।

एक ही छत के नीचे सभी समानो का समावेश

मल्टीप्लेक्स और शापिंग मांल्स की संख्या में बेशुमार बढ़ोतरी हो रही है। यह सिफZ महानगर ही नहीं छोटे शहरों में भी तेजी से खुलते जा रहे हैं। मल्टीप्लेक्स और शापिंग मांल्स से आज शापिंग आसान ही नहीं बल्कि दिलचस्प भी हो गइZ है। एक ही कांम्प्लेक्स में जीवन से संबंधीत सारी खरीदारी चाहे वो बच्चों के खेलने के लिए खिलौने हो या फिल्में देखने का जुनून या फिर खाने पीने की सुविधा सभी का आनंद लेने के लिए लोग अपने परिवार के साथ मल्टीप्लेक्स और शापिंग मांल्स की ओर तेजी से रूख करने लगे हैं। जिस कारणा बड़े से बड़े विदेशी ब्रांड आम मध्यमवगीZय लोगों तक की पहुंच में होने लगे हैं। मांल संस्कृति ने समाज के मध्मवगZ को पहले की तुलना में कहीं ज्यादा फन और लविंग बना दिया है।

मोबाइल ने बनाया सबको बातूनी

मोबाइल फोन की सस्ती दरों ने लोगों को बना दिया है जबरदस्त बातूनी। मौज-मस्ती का एक उचित माध्य के रूप में मोबाइल उभर कर सामने आया हैA जो अपनी अहम् भुमिका निभा रहा है। कौन कितने देर में आएगा इस बात का एक ही क्षण में पता लगा पाना इस दशक के बदौत मूतZरूप ले पाया है। मोबाइल की काल दर क्या गिरी हर हाथों तक मोबाइल की पहुंच हो गइZ और चटर-पटर चुटकी बजाते होने लगी। याद कीजिए उस दिन को जब मोबाइल की पहुच गिने चुने हाथों में थी और इनकमिंग के भी पैसे कटते थे । मोबाइल का ही देन है जो चिट्ठी पत्री के दिन हवा हो गए हैं। एसएमएस एमएमएस की एक नइZ संस्कृति ने जन्म ले लिया है जिसने मोबाइल चैटिंग को भी परवाना चढ़ाया। कमखचZ में बात करने फटाफट संदेश भेजने फोटो खीचनें रिकांडिZग करने और गाने सुनने के लिए तो मोबाइल का इस्तेमाल होता ही है। अब थ्री जी मोबाइल के बाजार में आ जाने से इन फीचसZ के अलावा कइZ नइZ सुविधाएं उपलब्ध हो गइZ हैं जो मोबाइल के साथ-साथ कंपयूटर का भी काम करती है। मोबाइल की बदौलत युवाओं के बीच प्रेम की अभिव्यक्ति भी आसान हो गइZ है। लाइZफ को हैल्दी करने की होड़ हैल्थ के प्रति लोग का रूझान पहले से अधिक बढ़ा है जिसके लिए कांनिश्‍यस वकZआउट से लेकर योग तक सब करने को हैं तैयार। कपालभाति, अनुलोम-विलोम, भामरी प्राणयाम, जैसे सुक्ष्म व्यायाम और आसन के जरिये मोटापा को दूर करने ब्लड प्रेसर को पस्त करने जैसे विश्‍वास को आग देते जुमलों ने अब योग को जनता के लिए सहज सुलभ कर दिया । बाबा रामदेव ने योग की अबूझा पहेली को सरल आसन प्राणायाम में बदलकर एक पैकेज की तरह पेश किया है। नतीजन योग की पैठ घर-घर में हो गयाZ। योग मोटापा, ब्लड प्रेशर, सहित दूसरी कइZ बीमारियों के निदान का वरदान माना जाने लगा। पिछले दस सालों में आम लोगों के बीच सेहत और फिटनेस को लेकर काफी जागरूकता आ चुकी है हर छोटे बड़े शहर में हैल्थ क्लब और जिम आसानी से देखे जा सकते हैं। इसी तरह खानपान में कम कैलोरी वाली स्वस्थ्यवधZक चीजों जैसे ओगेZनिक फल, सब्जियां, अनाज लो फैट चीज मक्खन ब्राउन ब्रेड शुगर फ्री मिठाइयां रोस्टेड नमकीन आज के शहरी मध्य वगZ का हो चुका है।

इंटरनेट है या अलादीन का चिराग

हर कोइZ बन गया है नांलेज मास्टर कोइZ भी परेशानी हो इंटरनेट हाजिर है। इंटरनेट के माध्यम से आने वाली सूचना क्रांति ने हमारी प्रोफेशनल लाइफ को ज्यादा आसान और व्यवस्थित बना दिया है। पहले की तरह बिजली के बिल का भुगतान, रेलवे का रिजर्वेशन और एलआइZसी का प्रीमियम जमा करने के लिए घंटों लाइन में लगने की जरूरत नहीं । इंटरनेट बैकिंग से आपका यह काम मिनटों में पूरा हो जाता है। स्कूल हो या कांलेज एडमिशन के लिए आंनलाइन आवेदन पत्र दाखिल किए जा सकते हैं। अपना रिजल्ट देखना हो तो भी इंटरनेट है नां। इतना ही नहीं बच्चों के होमवकZ से लेकर बुजुगोZ को हैल्थ टिप्स देने में भी इंटरनेट आगे है। महिलाएं इससे कुकरी से लेकर लेटेस्ट फैशन के टिप्स ले रही हैं। इंटरनेट की सोशल नेटवर्किंग साइट्स और ब्लांगिंग की सुविधा ने दूर बैठै लोगों के बीच संवाद कायम करने और भावनाओं की अभिव्यक्ति की पूरी आजादी है।

सैक्स में आया खुलापन

शहर से लेकर कस्बों तक संबंधों की वजZनाएं टूटी अब मैट्रो शहरों में कांस्मोपालिटन कल्चर में पली बढ़ी किशोरियों को सैक्सी कहलाने से कोइZ गुरेज नहीं पिछले दशक ने तेजी से रोल मांडल बदले हैं। आधुनिक किशोरियों को समाज की वास्तविक नायिकाओं से अधिक ग्लैमरस ज्यादा आकर्ष्ति करती हैं। लड़के कम उम्र में ही वजZनाओं को तोड़ने में माहिर हो चुके हैं। जाहिर है इससे संबंधों में खुलापन आया है। लड़कियां अगर सैक्सी है तो लड़के हैंडसम से हांट में बदल गए हैं। कभी झापड़ से डरने वाले प्रेमी अब खुले आम झप्पी भी देते हैं तो पप्पी भी उनके लिए कोइZ चुनौती नहीं रह गइZ सैक्सी जैसे गोपनीय विषय अब ओपेन हो चले हैं गंभीर माने जाने वाली प0िका िका अब सेक्स सवेZ छाप रही हैं।

टूर पैकेजों की सौगात

ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब छुटि्टयों के नाम पर बस ननिहाल याद आता था। दरअसल पूरे परिवार को साथ लेकर कहीं घूमने जाना अच्छी खासी मशाक्कत का काम था। अब जीवनशैौली से जुड़ी हर चीज की प्रस्तुति पैकेज में हो रही है। तो ट्रेवल एजेंसियां भी पीछे क्यों रहें ये सिफZ देश ही नहीं विदेश तक के लिए किफायती पैकेज टूर की व्यवस्था कर रही है। आजकल, थाइलैंड, सिंगापुर, मलेशिया, जाने वाले मध्यमवगीZय पयZटकों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। आज की जीवन शैली और मल्टीनेशनल कंपनियों की ऊंची तनख्वाह ने समाज में एक ऐसे तबके को तैयार कर दिया है जो हांली डे का इस्तेमाल सैर सपाटे के साथ आराम और स्वास्थ्य लाभ के लिए भी करता है। हैल्थ टूरिज्म आधुनिक जीवनशैौली का हिस्सा बनकर सामने आया । मल्टीप्लेक्स सिनेमा ने इस दौर में क्रांति ला दी तो छोटे परदे ने लाया प्रतिभाओं को आगे। पारंपरिक सिनेमा की जगह मल्टीप्लेक्स में हाइZ टैक्नीक साउंड वाले सिनेमा देखे जाने लगे जाहिर है मलटीप्लेक्स बूम ने सिनेमा की दुनिया ही बदल डाली। छोटे परदे पर रियलिटी

शोज की भरमार रही इन कायZक्रमों से लोगों में अपने बच्चों को मंच पर पहुंचाने की होड़ लगी हैZ । चैनलों को मौका मिला और उन्होंने टैलेंट सचZ के लिए छोटे शहरों की ओर रूख किया यह दशक खत्म होते -होते तो कितने ही इंडियन आइडल झलक दिखला कर गयाब हो गए। टीवी का स्वयंवर बच्चे संभालने का पालनाघर बन गया। यहां तक कि परफेक्ट ब्राइड के जरिए शादियां भी होने लगी। कहीं दस का दम तो कहीं सचका सामना कहीं बिग बांस तो कही दादागिरी अपनी धूम मचाती रही। इतने कम समय में भारतीय समाज का इतना जबर दस्‍त बदलाव यह दिखाता है कि आने वाले समय में हमारा देश बुलंदियों को छुएगाA

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