About Me

दरिया व पहाड़ो की मस्ती मुझे विरासत में मिली है। गंगा किनारे बसे शहर बनारस के पास मिर्ज़ापुर ज़िले के एक गावं बरेवां से पुरखों ने इस सफ़र की शुरूआत की। जो बहते बहते पहुंच गए सोन नदी के किनारे बसे राबर्ट्सगंज में । फिर वो वहीं के होकर रह गए। लेकिन मैंने रूकना कभी सीखा नहीं। बहते रहना- मेरी फितरत है, फक़ीरों की तरह। गंगा सागर में मिलने से बेहतर युमना किनारे बसे शहर दिल्ली में धुनी रमाना बेहतर समझा। जीने के लिए कलम का सहारा लिया। ज़माने को बदलना है- इस जज़्बे के साथ जूते घिस घिस कर अख़बारों और पत्र पत्रिकाओं में कलम घिसने की ठानी । ज़माना बदला हो या नहीं- ये पता नहीं। लेकिन इन दो साल में मैं ज़रूर बदल गया हूँ । बदलाव की शुरूआत हुई - अख़बारों की दुनिया में कदम रखने से । इस पत्रकारिता की दुनिया ने बार बार हाथ झटक दिया। लेकिन अब मैं थोड़ा डीठ हो चुका हूं। ख़ाल मोटी होने लगी है । पत्रकारिता और मेरे बीच मियां - बीवी जैसा रिश्ता क़ायम होने लगा है । कोशिश कर रहा हूं नाग नागिन के इस दौर में सार्थक पत्रकारिता करने की। कौन कहता है कि आसमान में सुराख़ नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। बस हव्शाला बुलंद होने की देरी है

Monday, February 22, 2010

बांस की जीवन यात्रा


गभZ में मां से शिशु को जोड़ने वाली नाल को काटने के लिए हमारे पू्वZजों द्वारा बांस के बने चाकू का प्रयोग किया जाना आज भले ही हमें आश्चयZचकित करे लेकिन यह सच है कि मानव जन्म के उपरांत उपयोग किये जाने वाले पालने से लेकर अंतिम यात्रा में प्रयुक्त होने वाली अथीZ तक में बांस की प्रायोगिक महत्ता निर्विवाद है। ..विडंबना ही है कि बहुपयेगी होने के बावजूद जागरूकता के अभाव एवं व्यवसायिक उदासीनता के कारण बांस अब दिनों दिन कम होते जा रहे हैं। बांस घास परिवार का सबसे ऊंचा पौधा है। समस्त वनस्पतियों में सर्वाधिक तेजी से बढ़ने वाले बांस 40 मीटर तक ऊंचा हो जाते है। अन्य पौधों की अपेक्षा यह 30 प्रतिशत अधिक आक्सीजन का उत्सर्जन एवं कार्बनडाई आक्साइड को ग्रहण करते हैं। पीपल वृक्ष के मानिन्द बांस भी रात में ही आक्सीजन का उत्सर्जन करते है। ज्यादे तर बांस डेन्ड्रो कैलोमस स्टीपस प्रजाति के होते हैं जिन्हें हम जंगली बांस का नाम दिये हैं जिनका व्यवसायिक उपयोग काफी कम मात्रा में होता है। कहा जाता है कि लगभग 48 वर्ष के उपरांत जीवन में एक बार बांस में फूल खिलते हैं उसके उपरांत बांस की श्प्राकृतकि मृत्यु हो जाती है किन्तु इस दौरान बांस नवजीवन हेतु अपने बीजों को छोड़ जाते हैं। प्रकृति ने इनकी इतनी लम्बी जीवन यात्रा को देखते हुए इन्हें अपनी गांठों से गन्ने की तरह निकलने वाले कल्लों की सहायता से बढ़ते रहने का गुण भी प्रदान किया है। विदेशों में बांस के उपयोग के लिए नित्य नये रिसर्च किये जा रहे हैं। इसके सेलुलोस से वस्त्र एवं उम्दा किस्म की स्वास्थ्य वर्धक शराब तैयार की जा रही है वहीं हमारे देश में इसका उपयोग टोकरी एवं चटाई तक सीमित है जबकि बांस का विविध उपयोग कर हम अपनी बहुमूल्य काष्ट सम्पदा को संरक्षति कर सकते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि विभिन्न कार्यक्रम संचालित कर आदिवासियों एवं ग्रामीणों को तकनीकी दक्षता प्रदान की जाय। बांस के फर्नीचरों] डिजाइनर] क्राफ्ट] हेयर] क्लिप] ग्रीटिंग कार्ड आदि वस्तुओं के निर्माण को प्रोत्साहित किया जाय। बहरहाल आप यूपी के सोनभद्र जनपद के रेनूकूट से सड़क मार्ग द्वारा अनपरा की तरफ बढ़ें या फिर अनपरा से सड़क मार्ग द्वारा जिंगुरदह की ओर। लभरी के जंगल से लगायत जिंगुरदह की पठारी घाटियों में आपको बांस के प्राकृतकि जंगल का अभूतपूर्व नजारा दिखायी देगा। तबीयत खुश कर देने वाले 109] 33] 32] ]25 वर्ग किलोमीटर के टुकड़ों में बंटे यह जंगला आपको भौचक्का कर देने का माद्दा रखते हैं। ऊंचे पहाड़ों] घाटियों] सरोवरों] झरनों और कहीं-कहीं रिहंद सागर के लहलहाते समंदर के बीच छोटे-छोटे टापुओं पर आसमान की बुलंदी को छूते यह बांस के जंगल चमत्कृत कर देते हैं।

Saturday, February 20, 2010

दरक रहा मीडिया का अस्तित्व

यदि किसी देश की असलियत जाननी हो तो उसके चौथे स्तंभ यानी मीडिया से रूबरू होना पड़ेगा । वर्तमान लोकतंत्र में मीडिया की जिम्मेदारी दिन-प्रतिदिन तगड़ी होती जा रही है। लेकिन इस सब से परे दुनिया पर हावी हो चुके बाजारवाद ने इस चौथे खंबे को झकझोर कर रख दिया है। 5-7 सालों से लगातार ये आरोप लगाए जा रहे हैं कि मीडिया अपने उद्देश्यों से भटक गया है, वह भ्रष्ट हो गया है, उसे देश और समाज की कोई फिक्र नहीं रह गई है, वह बाज़ार के हाथों में बिक गया है और उसका एकमात्र मक़सद मुनाफ़ा कमाना हो गया है। ज़ाहिर है इस तरह के आरोपों में सचाई है, अन्यथा बिना आग के तो धुँआ भी नहीं उठता। मीडिया पर लग रहे इन आरोपों से पत्रकारिता की छवि भी धूमिल हुई है और पत्रकार बिरादरी भी कठघरे में आ गई है। सवाल उठता है कि इस स्थिति के लिए कौन ज़िम्मेदार है, पत्रका...न्यूज़ चैनल और पत्र-पत्रिकाएं चलाने वाले प्रतिष्ठान, उनके मालिक, सरकार, बाज़ार या समूची व्यवस्था? जिन समाजिक एंव देश हित कार्यो के कारण मीडिया ने अपना अस्तित्व धारण किया था आज वही कार्य बाजारवाद के कारण उसके लिए बेइमानी हो गयी है। लोक तंत्र का सजग प्रहरी कहे जाने वाला यह स्तंभ अब दरक चुका है।

आज की मीडिया ब्रेन वाशिंग, फिल्म, क्रिकेट, सेक्स, व्यक्तिगत आक्षेप और प्रायोजित खबरों का सिर्फ अड्डा बन कर रह गया है। पहले मीडिया अपने कार्य को मिशन के रूप में करता था लेकिन वर्तमान समय में मीडिया प्रायोजित खबरों का सिर्फ अड्डा बन कर रह गया है। पहले मीडिया अपने कार्य को मिशन के रूप में करता था लेकिन वर्तमान समय में मीडिया ने अपने रोल को सिर्फ और सिर्फ व्यापार तक ही सीमट कर रख दिया है। जहां पत्रकारिता का मतलब सौदेबाजी है और राजनीतिक पत्रकारिता का मतलब राजनैतिक दलों का चरण चुमना है। विकास से गर्त की ओर जाने तक का सफर राजनीति की एक सोची समझी साज़िश है जिसमें एक झूठ बार-बार और इतनी बार बोला जाता है कि वो सच बन जाता है। आधुनिकता के इस दौर में समाज के आदर्श और मापदंडों को गिराकर इतना विकृत कर दिया गया है की वही सत्य और व्यवहारिक है। आधुनिक पत्रकारिता में बहस और तर्क -वितर्क के मुद्दे और परिणाम भी पहले से ही तय कर दिए जाते है। चाहे अखबार व पत्रिका का लेखन हो या चैनलो की बहस हो आज इनके सारे कार्यक्रम निरुदेशय होने के साथ तत्कालिक भी हैं, जिसमें सिर्फ भौड़ापन वाली सूचनाएं मिलती हैं। वर्तमान में अखबार और चैनलों का व्यापार पान की दुकान की तरह हर गली हर नुक्कड़ पर हो रहा है क्योंकि यह व्यापार अब अरबों रूप्यों का खेल बन गया है जिसके संचालन में थोड़े जोखिम के साथ बड़े निवेश की आवशयकता पड़ती है। लगभग सभी बड़े बिजनेस ग्रुप और नेताओं का किसी न किसी अखबार अथवा चैनल में निवेश है। जिसके माध्यम से बिजनेस ग्रुप और नेताओं द्वारा सरकारी तंत्र पर दबाव बनाना सौदेबाजी करना, अधिक से अधिक विज्ञापन लेना और अपने व्यापार के लिए बाजार तैयार करना प्रमुख रूप से शुमार है। वर्तमान में तकनीक का भरपूर प्रयोग हो रहा है और लगभग मुफ्त अखबार बांटे जाते हैं और चैनलों का प्रसारण भी सीमित भुगतान पर मिल जाता है। मीडिया का पहला और आखिरी सरोकार प्रसार संख्या और टी आर पी बढ़ाना है और उसको हासिल करने के लिए हर घटिया से घटिया उपाय इनके द्वारा किऐ जातें हैं। पत्रकारों और संपादकों का बौद्धकि स्तर अब आवश्यक नहीं है अब वो तकनीकी विशेषज्ञ और जन संपर्क अधिकारी की भूमिका में अधिक है। सच को छुपाना और भ्रम का बाजार खड़ा करना इनके प्राथिमकताओं में शामिल है। जिला स्तरीय पत्रकारिता इस व्यवसाय का निकृष्ट रूप है। भारत के प्रत्येक जिले में 200 से ले कर 1000 पत्रकार हैं। इनमें से बहुत से दलाल हैं जो थानों के सौदेबाजी में माहिर हैं। इनमें बहुत से करोड़पति है और कुछ करोड़पति होने की कगार पर हैं। सरकारी दफ्तरों के घोटालेबाज अफसरों, अपराधियों, स्थानीय नेताओं और पुलिस के साथ मिलकर एक अलग गठजोड़ बना लेते हैं फिर क्या है इसके एवज में शराब की बोतल से लेकर मोटा कमीशन तक कुछ भी इनको मिल सकता है। अक्सर खबरें खबर से संबंधित व्यक्ति पर दबाव बना कर अपना काम निकालने या पैसे बनाने के लिए छापी जाती हैं। जब उदेश्य सिद्ध हो जाता है तब खबरें गायब हो जाती हैं । समान्यत: अखबार के मालिकों या संपादकों का इन पर नियंत्रण न के बराबर होता है। अगर स्थानीय समाचार पत्र है तो हो सकता है कि पत्रकार ही मालिक हो फिर तो पूरी आजादी है। वर्तमान समय में ऐसे लाखों प्रकाशन देश में हैं जिनकी प्रसार संख्या 100 भी नहीं है और वो सरकार से लाखों के विज्ञापन ले लेते हैं। कागजों में हेरफेर कर प्रसार संख्या बीसों पचासों गुनी तक दिखाते हैं। स्थानीय अखबारों में अधिकांश खबरें बड़े अखबारों या पत्रिकावों से चुराई भी हो सकती हैं। राज्य स्तर की पत्रकारिता एक अलग खेल है। स्थानीय भाषा के अखबार पत्रिकाए व चैनल बड़े खिलाड़ी हैं। सत्तारूढ़ राजनैतिक दल से इनकी विशेस ट्यूनिंग होती है। अखबार पत्रिका या चैनल का मालिक किसी दल का नेता या पार्टी से गठजोड़ रखने वाला अद्योगपति अथवा व्यापारी हो सकता है। अक्सर पत्रकारों का बौद्वकि स्तर उतना परिपक्व ही नहीं होता कि वो निष्पक्ष ओर गहन विशले कर पाएं विशेषकर छोटे राज्यों में घटिया अथवा बिखरी हुई कवरेज के बीच गलाकाट प्रतियोगिता में प्रकाशन व चैनलों के बंद होने व पुन: प्रारंभ होने का खेल चलता रहता है । वही वह प्रकाशन चैनल सफल है जिसकी राज्य सरकारों से बेहतर तालमेल हैं। ऐसे में सस्ती जमीन मोटे विज्ञापन विभिन्न सुविधाऐं और मालिकों को व्यापारीक फायदे के साथ साथ राजनैतिक पद भी मिलना संभव हो जाता है। उसी अखबार की पाठक संख्या अधिक होती है जो स्थानीय समाचारों व चटपटी चीजो को छिपाते है इनके लिए विज्ञापन लेना एक बड़ा मुद्दा होता है जिसके लिए वो स्थानीय लोगों के मानसिक स्तर पर जाकर प्रसार बढ़ाते है न कि उनका स्तर उठाकर । सरकारी गैरसरकारी भ्रस्ताचार व सामंत कालीन के मुद्दे जितने जोर जोर से उठाए जाते हैं उतनी ही तेजी से गायब भी हो जाते हैं। क्यों यह सर्वविदित है । पूरे प्रदेश के केबल नेटवर्क पर सत्तारूढ़ मुख्यमंत्री का परोक्ष या अपरोक्ष नियंत्रण रहता है ऐसे में सरकार विरोधी खबर प्रसारित करना मुमकिन ही नहीं नामुमकिन हो जाता है। यदि कभी सरकार विरोधी खगर प्रसारित हो जाती है तो ऐसे में लेन-देन की व्यवस्था मूर्तरूप ले लेती है। आज मीडिया एक पीटा सा मोहरा हो गया है और असरहीन व अप्रभावी भी । बड़े ग्रुप अपने चैनलों व अखबारों के माध्यम से अपने व्यवसायिक हितों के लिए पत्रकारों के माध्यम से बाजारवाद का खेल खेलते हैं। इसी के साथ अनेक छोटे अखबार दलाली का खेल खेल कर धन कमाने की मुहिम छेड़े रहते हैं। सार्थक पत्रकारिता की परिभासा इन्हें आती ही नहीं है। अक्सर संपादकीय पन्नों पर आधी अधूरी बहस या मुद्दे छाये रहते हैं और लेखों में हुए कार्य का स्तर अधिक होता है । क्षेत्रीय और राट्रीय स्तर की मीडिया ने पिछले दो दशको में अपने आप को व्यापक रूप में खड़ा किया है। यदि देखा जाय तो बड़े मीडिया ग्रुप का लाभ 100 करोड़ से 1000 करोड़ तक का होता है। अनेक मीडिया समूहों का साम्राज्य 5 हजार करोड़ के बीच का है । अक्सर पाठक को वार्षिक सदस्यता की तर्ज पर अखबार व पत्रिका उपलब्ध होती है। फिर पाठक को वही पढ़ना होता है जो वो छापेगा। उत्तेजक खबरें, ब्रेकिंग न्यूज और एक ही खबर पर सारे चैनलों का एक साथ टूटना एक प्रकार की घुटन और वितृणा पैदा कर देता है। धरम अपराध, फिल्म, सेक्स, क्रिकेट, टीवी सीरियलों के समाचारों से 80 प्रतिशत समय पूरा किया जाता है और बाकी समय ब्रेकिंग न्यूज पर। आज के पत्रकारिता में सार्थक मुद्दों पर बहस शुन्य के बराबर हो गया है। मीडिया का काम आज के समय में जीडीपी की झूठी सरकारी खबरें, ‘शेयर बाजार के उतार चढ़ाव और मुद्रास्फीति के झूठे आंकलन तक ही सीमट कर रह गया है। परिस्थितियों का वास्तविक आंकलन और उपयुक्त समाधान सुझाने के स्थान पर हमे सरकारी लीपा पोती को सारे अखबार पत्रिका व चैनल तरजीह देते हैं जो अत्यंत आपतिजनक है। चारों और बिखराव, भ्रम, तात्कालिकता है। अपराध का कवरेज माफिया को महिमामंडित करना है और धर्म की कवरेज का मतलब अंधविशवास का प्रसार व भविस्य फल है । विज्ञान का मतलब प्रलय की खबरें और उत्का पिंडो व ब्रहमांड की फालतू खबरें तथा स्वास्थ का मतलब एड्स और sowinflu का प्रकोप फिल्मों की कवरेज यानी अर्ध नग्न हीरोइन, टीवी सीरियालों की कवरेज आदि सब है। मीडिया का इस तरह का योगदान हमारे देश को किस ओर ले जा रहा है यह एक अनसुलझी पहेली बना हुआ है। जरा सोचिए------------------

Thursday, February 18, 2010

आधुनिकता की चकाचौध में जीवन के रंग

आज के परिदृय की तुलना अतीत से करें तो अतुलनीय परिवतZन देखने को मिलते है। वतZमान जीवन शैली से पता चलता है कि पिछले एक दाशक के दौरान हमने क्या-क्या पाया है। आधुनिकता के विकास में यह आसानी से देखने को मिल जाता है कि घर के कुछ सदस्य इंटरनेट पर सर्फिंग कर रहे हैं तो कुछ शापिंग मांल्स में मनपसंद सामान खोज रहे हैं। एक तरफ जहां मंदी से सभी देश जूझ रहे थे वहीं हिंदुस्तानी परिवार शान से लखटकिया कार खरीदकर सैर-सपाटे की प्लानिंग में वयस्त रहा । सूचना क्रांती ने इस तरह अपना जाल बिछाया कि संबंधों में जम कर खुला पन आ गया । विकास के दौर में थैरेपी इतनी आगे हो गइZ है कि कोइZ ऐसी बीमारी नहीं जिसका इलाज आज संभव न हो। बदलाव के इस बयार में बहने वालों की भरमार है तो वहीं खुशियां खोजने के लाखों बहानें।

वतZमान समय में हमारे समाज में ऐसे कारणों की भरमार है जिन्हों ने जीवन शैली को बदल कर रख दिया है जो निम्न है।

खुबसूरत दिखने की दिवानगी

पहले के समय में सुंदर दिखने की चाह लोगों में कुछ खास मौकों पर होती थी। लेकिन अब हर मौके पर कुछ खास दिखने की चाह ने लोगों को अपना दिवाना बना लिया है। पिछले एक दशक से खूबसूरत दिखने को लेकर जैसी दिवानगी देखी जा रही है वैसे पहले कभी भी नहीं देखी गइZ। खूबसूरत दिखने का दौर प्रमुख रूप से शुरू होता है नाक की कांस्मेटिक सजZरी कराने और तोंट घटाने से । सुंदरता को बढ़ाने के नाम पर बाजार में ऐसे कइZ ब्यूटी प्रांडक्ट उपलब्ध हैं जो लड़के-लड़कियों को गोरा और हांट-सैक्सी बनाने का दम भरने लगे हैं। आधुनिक समय में बैस्ट वकZ परफांमेZस के साथ अच्छी पसZनेलिटी और गुड लुक्स मैंटेन करना जरूरी कायोZ में शुमार हो गया है। जब हर तरफ ऐसा जोश हो कि उम्र भी धोखा खा जाए तो बुजुगZ भी समझौता क्यों करें । जनरेशन एस यानी सीनियर सिटीजंस ने भी इस मामले में बराबर की कदमताल ठोकी है।

एक ही छत के नीचे सभी समानो का समावेश

मल्टीप्लेक्स और शापिंग मांल्स की संख्या में बेशुमार बढ़ोतरी हो रही है। यह सिफZ महानगर ही नहीं छोटे शहरों में भी तेजी से खुलते जा रहे हैं। मल्टीप्लेक्स और शापिंग मांल्स से आज शापिंग आसान ही नहीं बल्कि दिलचस्प भी हो गइZ है। एक ही कांम्प्लेक्स में जीवन से संबंधीत सारी खरीदारी चाहे वो बच्चों के खेलने के लिए खिलौने हो या फिल्में देखने का जुनून या फिर खाने पीने की सुविधा सभी का आनंद लेने के लिए लोग अपने परिवार के साथ मल्टीप्लेक्स और शापिंग मांल्स की ओर तेजी से रूख करने लगे हैं। जिस कारणा बड़े से बड़े विदेशी ब्रांड आम मध्यमवगीZय लोगों तक की पहुंच में होने लगे हैं। मांल संस्कृति ने समाज के मध्मवगZ को पहले की तुलना में कहीं ज्यादा फन और लविंग बना दिया है।

मोबाइल ने बनाया सबको बातूनी

मोबाइल फोन की सस्ती दरों ने लोगों को बना दिया है जबरदस्त बातूनी। मौज-मस्ती का एक उचित माध्य के रूप में मोबाइल उभर कर सामने आया हैA जो अपनी अहम् भुमिका निभा रहा है। कौन कितने देर में आएगा इस बात का एक ही क्षण में पता लगा पाना इस दशक के बदौत मूतZरूप ले पाया है। मोबाइल की काल दर क्या गिरी हर हाथों तक मोबाइल की पहुंच हो गइZ और चटर-पटर चुटकी बजाते होने लगी। याद कीजिए उस दिन को जब मोबाइल की पहुच गिने चुने हाथों में थी और इनकमिंग के भी पैसे कटते थे । मोबाइल का ही देन है जो चिट्ठी पत्री के दिन हवा हो गए हैं। एसएमएस एमएमएस की एक नइZ संस्कृति ने जन्म ले लिया है जिसने मोबाइल चैटिंग को भी परवाना चढ़ाया। कमखचZ में बात करने फटाफट संदेश भेजने फोटो खीचनें रिकांडिZग करने और गाने सुनने के लिए तो मोबाइल का इस्तेमाल होता ही है। अब थ्री जी मोबाइल के बाजार में आ जाने से इन फीचसZ के अलावा कइZ नइZ सुविधाएं उपलब्ध हो गइZ हैं जो मोबाइल के साथ-साथ कंपयूटर का भी काम करती है। मोबाइल की बदौलत युवाओं के बीच प्रेम की अभिव्यक्ति भी आसान हो गइZ है। लाइZफ को हैल्दी करने की होड़ हैल्थ के प्रति लोग का रूझान पहले से अधिक बढ़ा है जिसके लिए कांनिश्‍यस वकZआउट से लेकर योग तक सब करने को हैं तैयार। कपालभाति, अनुलोम-विलोम, भामरी प्राणयाम, जैसे सुक्ष्म व्यायाम और आसन के जरिये मोटापा को दूर करने ब्लड प्रेसर को पस्त करने जैसे विश्‍वास को आग देते जुमलों ने अब योग को जनता के लिए सहज सुलभ कर दिया । बाबा रामदेव ने योग की अबूझा पहेली को सरल आसन प्राणायाम में बदलकर एक पैकेज की तरह पेश किया है। नतीजन योग की पैठ घर-घर में हो गयाZ। योग मोटापा, ब्लड प्रेशर, सहित दूसरी कइZ बीमारियों के निदान का वरदान माना जाने लगा। पिछले दस सालों में आम लोगों के बीच सेहत और फिटनेस को लेकर काफी जागरूकता आ चुकी है हर छोटे बड़े शहर में हैल्थ क्लब और जिम आसानी से देखे जा सकते हैं। इसी तरह खानपान में कम कैलोरी वाली स्वस्थ्यवधZक चीजों जैसे ओगेZनिक फल, सब्जियां, अनाज लो फैट चीज मक्खन ब्राउन ब्रेड शुगर फ्री मिठाइयां रोस्टेड नमकीन आज के शहरी मध्य वगZ का हो चुका है।

इंटरनेट है या अलादीन का चिराग

हर कोइZ बन गया है नांलेज मास्टर कोइZ भी परेशानी हो इंटरनेट हाजिर है। इंटरनेट के माध्यम से आने वाली सूचना क्रांति ने हमारी प्रोफेशनल लाइफ को ज्यादा आसान और व्यवस्थित बना दिया है। पहले की तरह बिजली के बिल का भुगतान, रेलवे का रिजर्वेशन और एलआइZसी का प्रीमियम जमा करने के लिए घंटों लाइन में लगने की जरूरत नहीं । इंटरनेट बैकिंग से आपका यह काम मिनटों में पूरा हो जाता है। स्कूल हो या कांलेज एडमिशन के लिए आंनलाइन आवेदन पत्र दाखिल किए जा सकते हैं। अपना रिजल्ट देखना हो तो भी इंटरनेट है नां। इतना ही नहीं बच्चों के होमवकZ से लेकर बुजुगोZ को हैल्थ टिप्स देने में भी इंटरनेट आगे है। महिलाएं इससे कुकरी से लेकर लेटेस्ट फैशन के टिप्स ले रही हैं। इंटरनेट की सोशल नेटवर्किंग साइट्स और ब्लांगिंग की सुविधा ने दूर बैठै लोगों के बीच संवाद कायम करने और भावनाओं की अभिव्यक्ति की पूरी आजादी है।

सैक्स में आया खुलापन

शहर से लेकर कस्बों तक संबंधों की वजZनाएं टूटी अब मैट्रो शहरों में कांस्मोपालिटन कल्चर में पली बढ़ी किशोरियों को सैक्सी कहलाने से कोइZ गुरेज नहीं पिछले दशक ने तेजी से रोल मांडल बदले हैं। आधुनिक किशोरियों को समाज की वास्तविक नायिकाओं से अधिक ग्लैमरस ज्यादा आकर्ष्ति करती हैं। लड़के कम उम्र में ही वजZनाओं को तोड़ने में माहिर हो चुके हैं। जाहिर है इससे संबंधों में खुलापन आया है। लड़कियां अगर सैक्सी है तो लड़के हैंडसम से हांट में बदल गए हैं। कभी झापड़ से डरने वाले प्रेमी अब खुले आम झप्पी भी देते हैं तो पप्पी भी उनके लिए कोइZ चुनौती नहीं रह गइZ सैक्सी जैसे गोपनीय विषय अब ओपेन हो चले हैं गंभीर माने जाने वाली प0िका िका अब सेक्स सवेZ छाप रही हैं।

टूर पैकेजों की सौगात

ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब छुटि्टयों के नाम पर बस ननिहाल याद आता था। दरअसल पूरे परिवार को साथ लेकर कहीं घूमने जाना अच्छी खासी मशाक्कत का काम था। अब जीवनशैौली से जुड़ी हर चीज की प्रस्तुति पैकेज में हो रही है। तो ट्रेवल एजेंसियां भी पीछे क्यों रहें ये सिफZ देश ही नहीं विदेश तक के लिए किफायती पैकेज टूर की व्यवस्था कर रही है। आजकल, थाइलैंड, सिंगापुर, मलेशिया, जाने वाले मध्यमवगीZय पयZटकों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। आज की जीवन शैली और मल्टीनेशनल कंपनियों की ऊंची तनख्वाह ने समाज में एक ऐसे तबके को तैयार कर दिया है जो हांली डे का इस्तेमाल सैर सपाटे के साथ आराम और स्वास्थ्य लाभ के लिए भी करता है। हैल्थ टूरिज्म आधुनिक जीवनशैौली का हिस्सा बनकर सामने आया । मल्टीप्लेक्स सिनेमा ने इस दौर में क्रांति ला दी तो छोटे परदे ने लाया प्रतिभाओं को आगे। पारंपरिक सिनेमा की जगह मल्टीप्लेक्स में हाइZ टैक्नीक साउंड वाले सिनेमा देखे जाने लगे जाहिर है मलटीप्लेक्स बूम ने सिनेमा की दुनिया ही बदल डाली। छोटे परदे पर रियलिटी

शोज की भरमार रही इन कायZक्रमों से लोगों में अपने बच्चों को मंच पर पहुंचाने की होड़ लगी हैZ । चैनलों को मौका मिला और उन्होंने टैलेंट सचZ के लिए छोटे शहरों की ओर रूख किया यह दशक खत्म होते -होते तो कितने ही इंडियन आइडल झलक दिखला कर गयाब हो गए। टीवी का स्वयंवर बच्चे संभालने का पालनाघर बन गया। यहां तक कि परफेक्ट ब्राइड के जरिए शादियां भी होने लगी। कहीं दस का दम तो कहीं सचका सामना कहीं बिग बांस तो कही दादागिरी अपनी धूम मचाती रही। इतने कम समय में भारतीय समाज का इतना जबर दस्‍त बदलाव यह दिखाता है कि आने वाले समय में हमारा देश बुलंदियों को छुएगाA

Wednesday, February 17, 2010

क्या कंप्यूटर की सुस्ती से परेशान हैं





क्या आपका कंप्यूटर बार-बार हैंग हो जाता है? क्या आपका कंप्यूटर बहुत स्लो है और कमांड देने के बाद हमेशा इंतजार करना पड़ता है? कहीं एसा तो नहीं की आपके कंप्यूटर में वायरसों की पूरी कॉलोनी बस गई है ? ऐसी ही तमाम आशंकाएं हर कंप्यूटर यूजर के दिमाग में चलती रहती हैं । आइये जानें कंप्यूटर की स्पीड बढ़ाने के तरीके:

जेसा की हम जानते हैं कंप्यूटर बिना ऑर्डर के न तो काम शुरू करता है और न ही बंद होता है। किसी भी विंडो को क्लोज करने से पहले भी यह यूजर की सहमति मांगता है- 'डू यू वॉन्ट टु सेव द चेंजेज'। यूजर के पास तीन ऑप्शन होते हैं- यस, नो और कैंसल। इनमें से किसी एक ऑप्शन पर क्लिक करते ही आप उम्मीद कर सकते हैं कि यह मशीन आपके कमांड के अनुसार फौरन ऐक्शन शुरू कर देता है । अगर कंप्यूटर ने आपके आदेश को मानने में चंद सेकंड की देरी की तो मान लें कि आपकी इस स्पीड मशीन का सिस्टम स्लो है। यदि ध्यान नहीं दिया गया तो कंप्यूटर का यह मर्ज 'हैंग' के रूप में दिखने लगेगा।

कब मानें कंप्यूटर है स्लो?

एक्सपर्ट नलिन गौड़ का मानना है कि सिस्टम को स्लो या फास्ट कहने का कोई मानक तय नहीं है। नीचे लिखी सूरतों में आप मान सकते हैं कि आप का पीसी स्लो है:
  • जब कंप्यूटर ऑन करते हैं तो उसके शुरू होने में एक मिनट से ज्यादा वक्त लगे।
  • ऐप्लिकेशन के यूज के दौरान डायलॉग बॉक्स के स्क्रीन पर दिखने में 15 सेकंड से ज्यादा समय लगे

  • कमांड देने के बाद विंडो 10 सेकंड तक ओपन न हो।


स्लो होने की खास वजहें:

1. RAM की कपैसिटी कम होने और ऐप्लिकेशन का बोझ बढ़ने से

2. सिस्टम वायरस की चपेट में आने से

3. नकली या फिर बिना लाइसेंस वाले सॉफ्टवेयर का यूज करने से

4. नए ऐप्लिकेशन और सीपीयू की स्पीड में तालमेल नहीं होने से

5. एक साथ कई ऐप्लिकेशंस पर काम करने से

6. गेम्स और साउंड व हेवी पिक्चर वाले स्क्रीनसेवर भी कंप्यूटर की स्पीड को कम कर देते हैं

मेमरी में है दम तो प्रॉब्लम होगी कम

माइक्रोटेक सिस्टम के डायरेक्टर एस. सी. जैन के अनुसार ज्यादातर RAM की कपैसिटी कम होने और वर्क लोड लगातार बढ़ने की वजह से कंप्यूटर की स्पीड कम हो जाती है। इसलिए यूज के हिसाब से RAM की कपैसिटी बढ़ानी चाहिए। दरअसल क्वॉर्क, फोटोशॉप, विडियो प्लेयर जैसे कई ऐप्लिकेशन स्पेस के भूखे होते हैं। इन पर काम करने के साथ ही मेमरी में स्पेस कम होता जाता है। इस दौरान जब कई सॉफ्टवेयर पर एक साथ काम किया जाता है, तब कंप्यूटर के हैंग और स्लो होने का खतरा बढ़ जाता है। 2 जीबी की RAM, 3 मेगाहर्ट्ज की स्पीड में चलने वाला सीपीयू और 160 से 320 जीबी तक की हार्ड डिस्क से लैस कंप्यूटर में स्लो या हैंग होने की दिक्कत कम आती है।

कैसे जानें यूजर स्पेस का हाल

जब हम एक साथ कई ऐप्लिकेशंस को ऑपरेट करते हैं तो मेमरी स्पेस कम हो जाता है। इसलिए जब कंप्यूटर स्लो होने लगे तो चेक करें कि कौन सा ऐप्लिकेशन प्रॉसेसर को रोक रहा है या कितने स्पेस का यूज हो रहा है। चेक करने का तरीका आसान है:

स्टेप1 - CRTL ALT DEL करें, एक नई विंडो स्क्रीन सामने आएगी। इसमें टास्क मैनेजर पर क्लिक करें।

स्टेप 2 - फिर उसमें 'प्रॉसेसेज' का बटन क्लिक करें।

स्टेप 3- स्क्रीन पर एक लिस्ट दिखेगी, अब मेम. यूसेज पर क्लिक करें। फाइलें अरेंज हो जाएंगी। अब फाइल्स और ऐप्लिकेशन की साइज के मुताबिक अपनी फौरी प्राथमिकता तय करें यानी यह तय करें कि फिलहाल किस ऐप्लिकेशन को बंद किया जा सकता है और किसे नहीं।

स्टेप 4 - फिर उस ऐप्लिकेशन को बंद करें, कंप्यूटर की स्पीड बढ़ जाएगी।

स्लो कंप्यूटर से बचना हो तो-

1. आपके कंप्यूटर की सी ड्राइव में कम-से-कम 300 से 500 एमबी फ्री स्पेस हो। इसे देखने के लिए माई कंप्यूटर पर क्लिक करें, उसमें सी ड्राइव जहां लिखा है, उसके सामने स्पेस की जानकारी मिल जाती है।

2. अगर सी ड्राइव में स्पेस फुल हो तो वहां पड़ी बेकार की फाइलें और प्रोग्राम्स को डिलीट कर दें।

3. अगर सी ड्राइव की मेमरी में 256 एमबी से कम स्पेस बचा है तो गेम्स न खेलें।

4. हार्ड ड्राइव को अरेंज करने के लिए महीने में एक बार डिस्क फ्रेगमेंटर जरूर चलाएं। यह आपकी हार्ड डिस्क में सेव की गई अव्यवस्थित फाइलों और फोल्डरों को अल्फाबेट के हिसाब से दोबारा अरेंज करता है।

कैसे चलाएं डिस्क फ्रेगमेंटर

Start /Programmes / Accessories / System tool / Disk fragmenter पर क्लिक करने के बाद विंडो स्क्रीन पर आएगा। फिर उसमें Defragment ऑप्शन पर क्लिक करें। डिस्क क्लीनर के ऑप्शन पर क्लिक करते ही टेंपररी और करप्ट फाइलें इरेज हो जाती हैं।

5. अगर एक सिस्टम में दो विडियो ड्राइवर (मसलन, विंडो मीडिया प्लेयर और वीएलसी प्लेयर) हैं तो बारी-बारी उनका यूज करें, दोनों को एक साथ बिल्कुल न चलाएं।

6. किसी नए विंडो सॉफ्टवेयर को रीलोड करने से पहले उसके पुराने वर्जन को डिलीट करें।

7. इंटरनेट से ऐंटि-वायरस और प्रोग्राम डाउनलोड करने से परहेज करें, डुप्लिकेट ऐंटि-वायरस प्रोग्राम्स को करप्ट (खत्म) कर सकता है।

8. पुराने सॉफ्टवेयर पर नए प्रोग्राम्स को रन न करें।

9. नए प्रोग्राम के हिसाब से सॉफ्टवेयर लोड कर अपने सिस्टम को अपडेट करें।

10. जब एक साथ तीन सॉफ्टवेयर प्रोग्राम चल रहे हों तो इंटरनेट को यूज न करें।

11. जब सिस्टम स्लो होने लगे तो लगातार कमांड न दें वरना कंप्यूटर हैंग हो सकता है।

12. पेन ड्राइव यूज करते समय ध्यान रखें कि वह कहीं अपने साथ वायरस तो आपके कंप्यूटर से शेयर नहीं कर रहा है। पेन ड्राइव को सिस्टम से अटैच करने के बाद ओपन करने से पहले स्कैन करें। अगर आपके सिस्टम में इफेक्टिव ऐंटि-वायरस नहीं है, तो पेन ड्राइव को फॉर्मेट भी किया जा सकता है। फॉर्मेट करना बेहद आसान है। पेन ड्राइव का आइकन कंप्यूटर पर आते ही उस पर राइट क्लिक करें। फॉर्मेट का ऑप्शन आ जाता है। मगर ध्यान रखें कि फॉर्मेट करने पर पेन ड्राइव का पूरा डेटा डिलीट हो जाता है।

13. बीच-बीच में सिस्टम से टेंपररी इंटरनेट फाइल्स को भी डिलीट करना जरूरी है। इसके लिए ब्राउजर ( इंटरनेट एक्सप्लोरर या मोजिला) ओपन करते ही ऊपर की तरफ टूल्स का ऑप्शन लिखकर आता है। उस पर क्लिक कर इंटरनेट ऑप्शन को चुन लें। ऐसा करते ही एक नया विंडो खुलेगा, जिसमें एक ऑप्शन ब्राउजिंग हिस्ट्री और कुकीज को डिलीट करने का भी होगा। इस पर क्लिक करते ही टेंपरेरी फाइल्स डिलीट हो जाती हैं।

बायोस चेक करें

कंप्यूटर कारोबारी और सॉफ्टवेयर इंजीनियर अतुल त्यागी के मुताबिक आपके सिस्टम में कौन-कौन से सॉफ्टवेयर हैं और उनका कॉनफिगरेशन क्या है, इस बारे में जानकारी के लिए बायोस चेक करें। कंप्यूटर ऑन करने के बाद और विंडो के अपलोड होने से पहले जब स्क्रीन ग्रे शेड की होती है और एक कर्सर ब्लिंक कर रहा होता है, उस समय F2 कमांड दें। सिस्टम का सारा कन्फीगरेशन आपके सामने होगा। अगर किसी सॉफ्टवेयर में एरर है, तो कंप्यूटर इस बारे में भी बताएगा।

वायरस को बाहर निकालो!

जेटकिंग से जुड़े एक्सपर्ट संजय भारती के मुताबिक वायरस चेक करने के लिए कंप्यूटर स्कैन करें। हालांकि कंप्यूटर में ऐक्टिव वायरस होने पर वंर्किंग के दौरान ही दिक्कतें आने लगती हैं। वायरस का नाम भी स्क्रीन पर कोने में आने वाले पॉप अप विंडो के जरिए आने लगता है। इसके अलावा वायरस होने पर तमाम फाइल और फोल्डर्स के डुप्लिकेट बनने लगते हैं। कई फोल्डर्स में ऑटो रन की फाइल अपने आप बन जाती है। बिना कमांड के अनवॉन्टेड फाइलें खुलने और बनने लगेंगी। जब कंप्यूटर इंटरनेट से कनेक्ट हो और लगातार ऐंटि-वायरस लोड करने की गुजारिश की जा रही हो तब मान लीजिए कि वायरस अटैक हो चुका है।

- सिस्टम से वायरस को हटाने के लिए ओरिजिनल ऐंटि-वायरस लोड करें, यह पूरे कंप्यूटर में वायरस को ढूंढकर खत्म करेगा।

इंटरनेट से फ्री में डाउनलोड होने वाले ऐंटि-वायरस की वैलिडिटी तय होती है। कई बार सिर्फ ट्रायल वर्जन ही मिलता है, इसलिए इंटरनेट से ऐंटि-वायरस उधार न लें तो बेहतर है।

अगर हार्डवेयर में प्रॉब्लम हो तो जिस कंपनी का प्रॉडक्ट हैं, वहां संपर्क करें। कई कंपनियां सिस्टम और पार्ट्स की गारंटी या वॉरंटी देती हैं, इस फैसिलिटी का उपयोग करें। एक्सपर्ट कंपनी के पार्ट्स को विश्वसनीय मानते हैं हालांकि नेहरू प्लेस, वजीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया या लोकल मार्केट से सिस्टम को दुरुस्त कराने में जेब कम हल्की होगी।

Monday, February 15, 2010

यातायात असुविधा के जिमेदार कहीं हम तो कहीं प्रशासन




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Tuesday, February 9, 2010

लोकतंत्र का मजाक बनाने लगे हमारे नेता


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