Wednesday, October 23, 2024

प्यार और परंपरा का संघर्ष

 लव मैरिज बनाम अरेंज्ड मैरिज


परिचय

   शादी जीवन का एक महत्वपूर्ण निर्णय होता है, और इसे लेकर हर व्यक्ति के विचार अलग होते हैं। "Love marriage vs arranged marriage" का सवाल हमेशा से ही समाज में बहस का विषय रहा है। एक ओर जहां लव मैरिज को आधुनिकता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता है, वहीं दूसरी ओर अरेंज्ड मैरिज को परिवार और परंपरा से जुड़ा एक महत्वपूर्ण निर्णय समझा जाता है। वर्तमान में भी यह चर्चा उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी पहले थी। आइए, हम इस ब्लॉग के माध्यम से "Love marriage vs arranged marriage" की विभिन्न पहलुओं पर नजर डालते हैं और समझते हैं कि आज के समय में कौन सा विकल्प बेहतर है।

Tuesday, October 8, 2024

सुखद वैवाहिक जीवन का मूल मंत्र

    सुखद वैवाहिक जीवन यानी पति-पत्‍नी का मजबूत रिश्‍ता, इस रिश्‍ते में दो ऐसे लोगों अपना जीवन एक साथ आपसी  समझ के साथ ख़ुशी-ख़ुशी बिता देते है जिनके परवरिश एवं सोच में काफी अन्‍तर होता है।

     बदलते परिवेश के साथ-साथ इस पति पत्‍नी के रिश्‍तें में भी बदलाव आने लगा है, प्राय: देखा जाने लगा है कि पति पत्‍नी के बीच किसी आदत एवं विचारों का मेल न खाने पर एक-दूसरे से नाराज़गी रखना या बात न करना आम बात हो गयी है जिस कारण बनती है दूरियां और टूटते है रिश्‍तें। 

     आईये जानते है वर्तमान परिवेश में कैसे बनायें अपने वैवाहिक जीवन को सूखद  

Monday, October 7, 2024

जीवन का सार धन सम्‍पत्ति अर्जन या शांतिपूर्ण, तनावमुक्‍त सूखी जीवन

 

   उक्‍त शिर्षक को देख कर आप यह सोच रहें होंगे,ये क्‍या बेवकुफियत वाली बात है वर्तमान परिवेश में अपनी पहचान बनाने के लिए और भौतिक आवश्‍यक्‍ता को पूर्ण करने के लिए धन, सम्पिति अर्जित करना ही जीवन का सार है, इसमें नया क्‍या है क्‍यों हम अपना समय इस पोस्‍ट में बर्वाद करें,जरा ठहरिये-----

Thursday, December 22, 2011

तनहाई मिटाऐगा अब मानव रोबोट


क्या आप तन्हा हैं कोई आप का साथ नहीं देता आप को एक जीवन साथी की जरूरत है जो आप का ख्याल रखे यदि आपके उपरोक्तो आवश्‍यक्‍ता को कोई मानव समुदाय पुरा नहीं करता तो इसको पूरा करेगा आधुनिक मशीन यानी मानव रोबोट जो आपका दोस्तई, प्रेमी, पति, रिश्ते दार बनेगा जी हां एक जर्मनी डिजायनर स्टेफन अल्रिक ने ऐसा मानव रोबोट बनाया है जो इंसान के प्रतिक्रिया व स्पार्स के आधार पर अपने आप को संचालित करता है यह रोबोट मनुष्यो का ढांचा मात्र है जो दिखने बिलकुल सुन्दपर नहीं है क्यों कि ये वर्तमान समय में निर्माण की प्रारंभिक अवस्था् से गुजर रहा है हलांकि यदि इसके आकार की बात करें तो यह एक बडे तकीए के जैसा है. परंतु इसको विकसित करने वाले डिजायनर का दावा है कि जब यह तकनीक पूर्ण रूप से विकसित हो जाएगी तो उसके बाद रोबोट के शारीरिक ढांचे को सुधारने का काम किया जाएगा.l
आधुनिकता की दौर में इंसान तकनीकी चीजों से घिरता जा रहा है और वह उसी में अपने जीवन के रंगों को तलाशने के साथ्‍ ही उससे प्रेम करने ल्रगा है यही कारण है कि यह मानव रोबोट इंसान के काम आयेगा और उसके जीवन की कमियों व अकेलेपन को दूर करने का एक आसान तकनीकी माध्यमम बनेगा और इस बेरहम दुनिया में इंसान कोई अपना होगा जो धोखा नहीं देगा इस रोबोट की सबसे बडी खास बात यह है कि ये इंसान के शरीर की गर्मी, स्पर्श और चमडी के रंग को भाँप कर उस हिसाब से प्रतिक्रिया देगा l
इस अजूबे रोबोट का करना हो अभी बस इंतजार ……………….

Tuesday, October 19, 2010

मासूमों के शोषण व तस्‍करी का खौफनाक मंजर


मासूमों के शोषण और उनकी तस्करी की घटनांए वर्तमान समय में इतनी ज्यादा हो चुकी हैं कि ये बात अब सुनने में साधारण लगने लगी हैं । मासूमों का शोषण और उसकी रूप रेखा महानगरों के चौंराहों ,क्र्रासिंगों आदि भीड़. भाड़ वाले स्थान पर भीख मांगते कम उम्र के बच्चों के समूहों को देख कर आसानी से तैयार किया जा सकता है जहां शोषित बच्चो का समूह अधिक होता है। जो अपना पेट भरने के लिए शहर के फुटपाथों पर जूते कार चमकाते नजर आते है तो कुछ फूल गुलदस्ता चाकलेट आदि बेचते नजर आते है। जब उससे भी उनका काम नही चलता तो अपने आपको ही बेचने के लिए विवश हो जाते हैं ना जाने ये बच्चे कितनी बार कितनो के हाथ बिकते हैं जिसका आंकड़ा जुटा पाना भी मुश्किल होता है महानगरों में जीवनयापन के लिए आए मासूम इस कदर शोषण का शिकार हो जाते है कि अपने परिजनों से मिलने की उनकी आस आस ही रह जाती है अगर इन बच्चों पर गौर किया जाए तो इनकी तस्करी भी जोरों पर है। संभवत: इसी का नतीजा है कि महानगरों में महज साल भर के भीतर इतने बच्चे लापता हो चुके है जिनका आंकलन कर पाना मुश्किल ही नही नामुमकिन सा लगता है। बच्चों की तस्करी की ओर प्रकाश डालते हुए एक श्रम संगठन ने सन् 2002 में एक रिपोटZ जारी की थी जिसमें इस बात का उल्लेख किया गया था कि विवभर में तकरीबन 12 लाख से ज्यादा बच्चों की तस्करी हुइZ है। श्रम संगठनों का अनुमान है कि इन बच्चों की तस्करी से अवैध रूप से तकरीबन 10 अरब डाWलर का सालाना व्यापार जोरों से किया जा रहा है। इसी श्रम संगठन ने वर्ष 2000 में बाल मजदुरी से जुड़े आंकड़ों से अनुमान लगाया गया है कि करीब 18 लाख बच्चों का सेक्स इंडस्ट्रीज में शेषण हो रहा है इस प्रकार के शोषण में खासतौर से लड़कियों की तस्करी विभिन्न यौन गतिविधियों के लिए कि जाती है इसी अधार पर श्रम संगठन द्वारा यह भी अनुमान लगाया जा रहा है। कि घरेलू मजदूरी में भी लड़कियों की संख्या सबसे अधिक होती है ऐसे बच्‍चों की तस्‍करी करने के लिए उनके परिवार वालों को अच्‍छी पढाई लिखाई या नौकरी का झांसा दिया जाता हैा

Thursday, October 7, 2010

बहुमुखी प्रतिभा के धनी ओम प्रकाश त्रिपाठी


उत्‍तर प्रदेश के सोनभद्र जिले की खूबसूरत वादियों में सामान्‍य शिक्षक के पुत्र के रूप में पैदा हुए शिक्षक व साहित्‍यकार ओम प्रकाश त्रिपाठी ग्रामीण परिवेश में रह कर उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त कर 27-1-1973 से बेसिक शिक्षा परिषद के अंतर्गत प्राथमिक विधालय में शिक्षण कार्यों द्वारा समाज के नई पीढी को एक नई दिशा दिखाने की कवायत शुरू की कुछ वर्षों बाद ही वे प्रमोट होकर जूनियर हाईस्‍कूल में अपने ज्ञान की गंगा बहाने लगे शैक्षिक कार्यो के साथ साथ राष्‍ट्रीय कार्यों मे सक्रियता, शैक्षिक व सांस्‍क़तिक संगोष्ठियों में सहभागिता के साथ मंच संचालन उनकी प्रतिभा की गाथा गाता है त्रिपाठी जी सोनभद्र के पहले शिक्षक व साहित्‍यकार है जो जनपद तथा राज्‍य स्‍तर पर भारत सरकार के नवीन नीतियों के मास्‍टर ट्रेनर रहे हैं त्रिपाठी जी को कई पुरस्‍कारों से भी सम्‍मानित किया गया है जो निरंतर जारी है जिन पुरस्‍कारों से इनको सम्‍मानित किया गया है उनमें राष्‍ट्रपति एवं राज्‍य पाल द्वारा सर्वश्रेष्‍ठ शिक्षक का पुरस्‍कार, कैमूर भूषण एवं सोनरत्‍न प्रमुख है साथ ही वे अन्‍य संस्‍थाओं द्वारा साहित्‍य के क्षेत्र में विभिन्‍न उपाधियों व शब्‍दश्री सम्‍मान से भी नवाजे गए हैं य‍दि इनके अग्रलेखों की बात करें तो कई पत्र पत्रिकाओं में उनके लेखों का प्रकाशन हुआ है त्रिपाठी जी के दिलों दिमाग में प्राकृतिक सुंदरता कुछ इस कदर समाई है कि लगता है मानों प्राकृति उनकी संगिनी हो 01 जून 1951 को पैदा हुए त्रिपाठी जी को प्रक़ति ने इस कदर सम्‍मोहित किया कि उन्‍होंनें पर्याव‍रणीय जीवन पर एक पुस्‍तक ही लिख दी पुस्‍तक लिखने के क्रम में उन्‍होंने दो और पुस्‍तकों को अस्तित्‍व दिया बहु मुखी प्रतिभा व आकर्षक व्‍यक्तित्‍व के धनी तिवारी जी बहुत जल्‍द ही लोगों से प्रभावित हो जाते हैं

Saturday, October 2, 2010

पंडितों की कमाई का बदनुमा दाग बाल-विवाह



एक भले सभ्य समाज के लिए बाल-विवाह घृणित कार्य है जिसके दुष्‍परिणामों के बारे में जितनी चर्चा कर ली जाय वो कम होगी। बाल-विवाह दो ऐसे अबोध जीवों को गृहस्थी के चक्की में पीसने की मशीन है ि‍जन्‍हे अपने अस्तित्व का भी बोध नहीं होता बाल-विवाह की कल्पना मात्र से ही रूह कांप जाती है लेकिन आज भी हमारे समाज में बाल-विवाह कर अबोध बच्चों की बली चढ़ाने का काम जारी है।

Tuesday, August 17, 2010

पिया मेंहदी लिआय दा मोतीझील से

बरसात की बूंदों से पूरी तरह सराबोर विन्ध्याचल की गलियों में पैदल चल रही 70 साल की शांति मिश्र गली के कोने में बने एक चबूतरे की और इशारा करती हैं- “यहाँ होते थे कजरी के दंगल सारी–सारी रात, एक से बढ़कर एक अखाड़े, जिसने सुनने वालों को बाँध लिया वो जीत गया.”

Thursday, April 22, 2010

मूर्ख बने रहने का आनंद ही कुछ और है

मुझे क्या पता” का मंत्र जपो, जीवन में सफल रहो : न संतान का... न सम्पत्ति का... न यश का... न श्रेय का... दुनिया में सबसे बड़ा कोई सुख अगर है तो बस मूर्ख बने रहने का सुख है। आप माने न मानें मूर्ख दिखने और बने रहने में (मूर्ख होने में नहीं) जो अदभुत सुख है वो दुनिया के किसी भी विलास-ऐश्वर्य मे नहीं है। मूर्ख दिखने के फायदे तो आपको कई लोग बताएंगे पर आपको बताते हैं कि कैसे बना जाता है मूर्ख और किस तरह से दुनिया भर में तमाम अक्लमंद लोग मूर्ख बन कर मज़े से ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं.....

Thursday, March 11, 2010

दिले हाल और सिंग्‍नल

आप की नजरें मिलीं और इसके बाद से आपके दिल में यह जानने की हलचल मची है कि वह आपके बारे में क्या सोच रहा होगा। वैसे , इन बातों का पता आप साइन लैंग्वेज से लगा सकती हैं। जानिए कैसे :