About Me

दरिया व पहाड़ो की मस्ती मुझे विरासत में मिली है। गंगा किनारे बसे शहर बनारस के पास मिर्ज़ापुर ज़िले के एक गावं बरेवां से पुरखों ने इस सफ़र की शुरूआत की। जो बहते बहते पहुंच गए सोन नदी के किनारे बसे राबर्ट्सगंज में । फिर वो वहीं के होकर रह गए। लेकिन मैंने रूकना कभी सीखा नहीं। बहते रहना- मेरी फितरत है, फक़ीरों की तरह। गंगा सागर में मिलने से बेहतर युमना किनारे बसे शहर दिल्ली में धुनी रमाना बेहतर समझा। जीने के लिए कलम का सहारा लिया। ज़माने को बदलना है- इस जज़्बे के साथ जूते घिस घिस कर अख़बारों और पत्र पत्रिकाओं में कलम घिसने की ठानी । ज़माना बदला हो या नहीं- ये पता नहीं। लेकिन इन दो साल में मैं ज़रूर बदल गया हूँ । बदलाव की शुरूआत हुई - अख़बारों की दुनिया में कदम रखने से । इस पत्रकारिता की दुनिया ने बार बार हाथ झटक दिया। लेकिन अब मैं थोड़ा डीठ हो चुका हूं। ख़ाल मोटी होने लगी है । पत्रकारिता और मेरे बीच मियां - बीवी जैसा रिश्ता क़ायम होने लगा है । कोशिश कर रहा हूं नाग नागिन के इस दौर में सार्थक पत्रकारिता करने की। कौन कहता है कि आसमान में सुराख़ नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। बस हव्शाला बुलंद होने की देरी है

Friday, October 1, 2010

पंडितों की कमाई का बदनुमा दाग बाल-विवाह



एक भले सभ्य समाज के लिए बाल-विवाह घृणित कार्य है जिसके दुष्‍परिणामों के बारे में जितनी चर्चा कर ली जाय वो कम होगी। बाल-विवाह दो ऐसे अबोध जीवों को गृहस्थी के चक्की में पीसने की मशीन है ि‍जन्‍हे अपने अस्तित्व का भी बोध नहीं होता बाल-विवाह की कल्पना मात्र से ही रूह कांप जाती है लेकिन आज भी हमारे समाज में बाल-विवाह कर अबोध बच्चों की बली चढ़ाने का काम जारी है।



र्तमान परिवे में भले ही बाल-विवाह हमारे संविधान में अपराध हो लेकिन हकिकत में यह अपराध नहीं यह तो समाजिक समारोह है जिस में सरकारी, गैरसरकारी, आम आदमी, नेता सभी शामिल होते हैं। हमारे दे के कुछ राज्य एसे हैं जहां आज बाल-विवाह ही होते हैं जिसका उदाहरण है राजस्‍थान जहां हर अक्षय तृतीय के दिन ऐसा को गांव नहीं होता जहां बाल-विवाह होता हो हर बार प्रशासन राजस्थान में हो रहे बाल विवाह को रोकने के लिए मुस्तैदी दिखता है लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाता है।


प्रशासन महिला एवं बाल विकास विभाग, स्वयंसेवी संस्थाएं सब एक जूट होकर हो रहे कुछ ही बाल-विवाह को रोक पाते हैं।


विवाह के लिए बनाए गए कानून के अनुसार लड़की के विवाह की उम्र 18 वर्ष और लड़के की 21 वर्ष है यादि को मां-बाप अपने बच्चे का विवाह इससे कम उम्र में करता है तो वो अपराघ की श्रेणी में आता है ि‍जसे 3 माह की कैद या 1000 रूपए जुर्माना अथवा दोनों हो सकता है।



विवाह के संबंध में हमारे कानून में इस बात का भी उल्लेख है यदि बालिग लड़का नाबालिग लड़की से शादी करता है तो वह भी सजा का हकदार है और इसी तरह नाबालिगों की शादी तय कराने वाले पंडित और काजी भी गुनेहगार होते हैं लेकिन हमारे समाज में आज तक पंडित और काजी की सजा तय नहीं की गई है और ही किसी को कभी किसी भी प्रकार की सजा हुई है।



पंडितों की अवैध कमा का जरिया बाल-विवाह


हमारे समाज में विवाह एक ऐसा संस्‍कार व रीतिरिवाज है जो माता-पिता के बिना हो सकता है लेकिन पंडित के बिना नहीं। बालविवाह रोकने के लिए बढ़ाऐ गए कदम तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक पंडितों और काजी के लिए सजा का प्रावधान नहीं होता। एक बार प्रशासन व सजा की डर से माता पिता बाल-विवाह का स्थगित कर दें या छिप कर बाल ि‍ववाह करने की व्यवस्था कर लें लेकिन सारे प्रकरण का संचालन र्ता पंडित सब से चतुर और बेखौफ होता है बाल-विवाह के प्रति पंडित निि‍र्भ रहता है और तब तक जजमान से चिपका रहता है जब तक


ि‍ववाह संपन्न करा लें यदि किसी कारण वश शादी टाल भी दी गई तो वो रह-रह कर कुरेदता रहता है ताकि दान ि‍क्षणा का अवसर समाप्त हो जाए।


यह बात सत्‍य है कि शादियां जितनी अधिक होंगी पंडितों पंडितों की आमदनी उतनी ही बढेगीA पंडितों के लिए बाल विवाह ही ऐसा माध्यम है जिसमें वो मनचाह क्षिणा प्राप्त करता है। बाल-विवाह में गौने की प्रथा होती है। बाल-विवाह में 8;10 साल के छोटे बच्चों का विवाह होता है जिसके बिदा के लिए गौना रखा जाता है गौने का समय पूरा होने पर अच्छे दिन अच्छे मुहूर्त में लड़की विदा की जाती है मुहूर्त देखने लिए फिर से पंडित का सहारा लिया जाता है। यदि लड़का लड़की की सुध ले या गौना कराए तो भी पंडित की आमदनी नहीं रूकती है वह दूसरी लड़की से शादी कराता है। चूंकि बचपन का विवाह अबोधावस्था में होता है इसलिए लड़के-लड़की का एक दूसरे से लगाव नहीं रहताबहुत सी ऐसी घटनाएं हैं जिसमें बाल-विवाह आगे कायम नहीं रह पाया है। .



अधिक्तर बेमेल साबित होते हैं बाल-विवाह


ज्यादे तर बाल-विवाह आगे चल कर बेमेल साबित होते हैं इसका मुख्य कारण होता है बच्चों के बड़े होने पर परिवर्त का दौर जैसे लड़का पढ-+लिख कर कुछ बन गया और लड़की गांव की अनपढ़ बाला रह तो उसे ला कर वह बहुत अपमानित महसूस करता है वह खुद उस का सम्मान करता है समाज उसे सम्मान देता है।


ऐसा ही कुछ हाल सोनभद्र की रहने वाली सुमा का है जिसने पति के साथ रह कर यही दिन देखे एक दिन पति उसे मायके छोड़ गया और ससुराल से उस का कभी बुलावा ही नहीं आया कुछ ऐसी ही स्थिति पढ़ी-लिखी लड़की और अनपढ़ लड़के के साथ होती है मान अपमान पारिवारिक क्ले और अलगाव ही इस का परिणाम है तलाक के बाद पुन विZवाह पंडितों के लिए एक सुखद संदे है। प्राय लड़का पुन विZवाह कर लेता है। जो उसके द्वारा छोड़ी हु लड़की होती है उसे ऊंची बोली वाला खरीद लेता है। इस के बाद वह समय-समय पर एक से दूसरे हाथ बिकती चली जाती है इस तरह एक कुप्रथा से दूसरी कुप्रथा का जन्म होता है।



बेमेल विवाह से अत्‍याचार का जन्म


गां में रिस्ते कराने का माध्यम पंडित है वह एक तरह से गां का मैरिज ब्यूरो होता है। पंडित जिसके पास लड़के और लड़की के संबंध में जानकारी एकत्रति रहती है वह लड़की वालों के यहां लड़का और लड़के वालों के यहां लड़की का रिश्‍ता ले कर जाता है मध्यस्थ बन कर रिश्‍ता पक्का कराता है साथ में अपने लिए दक्षणि का एक और अवसर पक्का कर लेता है।


जयपुर के ग्रामीण इलाके में रहने वाली सुघना बा का विवाह 12 साल की उम्र में हुआ था उस का रिता एक पंडित ले कर आया था डाला निवासी कंचन भी एक पंडित के लाए रिश्‍ते से ही बालपन में ब्याही थी जिसका अपने साथ हुए अत्‍याचार का जिक्र करते-करते गला भराZ गया उसे सुबह 5 बजे उठ कर 12 लोगों का खाना बनाना पड़ता और सारा दिन खेत में मजदूरी करनी पड़ती कठिन श्रम और कुपो के कारण उस का बच्चा भी कुपोषि पैदा हुआ जो कुछ दिनों में चल बसा।



बाल विवाह पंडितों के दुकानदारी का कटु सत्‍य


जिन का बाल-विवाह होता है उन के बच्चों की संख्या अधिक होती है मानसिक परिपक्वता शिक्षा का अभाव और परिवार नियोजन की सोच होने के कारण उनको अधिक बच्चे होना आम बात है बाल विवाह के दुष्‍परिणामों पर चाहे जितनी र्चा कर ली जाए बाल-विवाह तब तक नहीं रूकेगा जब तक पंडितों पर पाबंदी नहीं लगाया जाऐगा इसी तरह पंडित अपनी दुकानदारी चलाने के लिए बेसुध बच्चों के भविष्‍ को दांव पर लगाते रहेंगे और प्रशासन व समाज सेवी संस्‍थाएं बाल-विवाह को रोकने के लिए हर तरह का प्रयास करती रहेंगी लेकिन उनकों बडी कामयाबी नहीं मिलेगी





No comments:

Post a Comment