About Me

दरिया व पहाड़ो की मस्ती मुझे विरासत में मिली है। गंगा किनारे बसे शहर बनारस के पास मिर्ज़ापुर ज़िले के एक गावं बरेवां से पुरखों ने इस सफ़र की शुरूआत की। जो बहते बहते पहुंच गए सोन नदी के किनारे बसे राबर्ट्सगंज में । फिर वो वहीं के होकर रह गए। लेकिन मैंने रूकना कभी सीखा नहीं। बहते रहना- मेरी फितरत है, फक़ीरों की तरह। गंगा सागर में मिलने से बेहतर युमना किनारे बसे शहर दिल्ली में धुनी रमाना बेहतर समझा। जीने के लिए कलम का सहारा लिया। ज़माने को बदलना है- इस जज़्बे के साथ जूते घिस घिस कर अख़बारों और पत्र पत्रिकाओं में कलम घिसने की ठानी । ज़माना बदला हो या नहीं- ये पता नहीं। लेकिन इन दो साल में मैं ज़रूर बदल गया हूँ । बदलाव की शुरूआत हुई - अख़बारों की दुनिया में कदम रखने से । इस पत्रकारिता की दुनिया ने बार बार हाथ झटक दिया। लेकिन अब मैं थोड़ा डीठ हो चुका हूं। ख़ाल मोटी होने लगी है । पत्रकारिता और मेरे बीच मियां - बीवी जैसा रिश्ता क़ायम होने लगा है । कोशिश कर रहा हूं नाग नागिन के इस दौर में सार्थक पत्रकारिता करने की। कौन कहता है कि आसमान में सुराख़ नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। बस हव्शाला बुलंद होने की देरी है

Tuesday, October 19, 2010

मासूमों के शोषण व तस्‍करी का खौफनाक मंजर


मासूमों के शोषण और उनकी तस्करी की घटनांए वर्तमान समय में इतनी ज्यादा हो चुकी हैं कि ये बात अब सुनने में साधारण लगने लगी हैं । मासूमों का शोषण और उसकी रूप रेखा महानगरों के चौंराहों ,क्र्रासिंगों आदि भीड़. भाड़ वाले स्थान पर भीख मांगते कम उम्र के बच्चों के समूहों को देख कर आसानी से तैयार किया जा सकता है जहां शोषित बच्चो का समूह अधिक होता है। जो अपना पेट भरने के लिए शहर के फुटपाथों पर जूते कार चमकाते नजर आते है तो कुछ फूल गुलदस्ता चाकलेट आदि बेचते नजर आते है। जब उससे भी उनका काम नही चलता तो अपने आपको ही बेचने के लिए विवश हो जाते हैं ना जाने ये बच्चे कितनी बार कितनो के हाथ बिकते हैं जिसका आंकड़ा जुटा पाना भी मुश्किल होता है महानगरों में जीवनयापन के लिए आए मासूम इस कदर शोषण का शिकार हो जाते है कि अपने परिजनों से मिलने की उनकी आस आस ही रह जाती है अगर इन बच्चों पर गौर किया जाए तो इनकी तस्करी भी जोरों पर है। संभवत: इसी का नतीजा है कि महानगरों में महज साल भर के भीतर इतने बच्चे लापता हो चुके है जिनका आंकलन कर पाना मुश्किल ही नही नामुमकिन सा लगता है। बच्चों की तस्करी की ओर प्रकाश डालते हुए एक श्रम संगठन ने सन् 2002 में एक रिपोटZ जारी की थी जिसमें इस बात का उल्लेख किया गया था कि विवभर में तकरीबन 12 लाख से ज्यादा बच्चों की तस्करी हुइZ है। श्रम संगठनों का अनुमान है कि इन बच्चों की तस्करी से अवैध रूप से तकरीबन 10 अरब डाWलर का सालाना व्यापार जोरों से किया जा रहा है। इसी श्रम संगठन ने वर्ष 2000 में बाल मजदुरी से जुड़े आंकड़ों से अनुमान लगाया गया है कि करीब 18 लाख बच्चों का सेक्स इंडस्ट्रीज में शेषण हो रहा है इस प्रकार के शोषण में खासतौर से लड़कियों की तस्करी विभिन्न यौन गतिविधियों के लिए कि जाती है इसी अधार पर श्रम संगठन द्वारा यह भी अनुमान लगाया जा रहा है। कि घरेलू मजदूरी में भी लड़कियों की संख्या सबसे अधिक होती है ऐसे बच्‍चों की तस्‍करी करने के लिए उनके परिवार वालों को अच्‍छी पढाई लिखाई या नौकरी का झांसा दिया जाता हैा

वर्तमान समय में प्रकृतिक आपदाओं की उहापेह में बच्‍चों की तस्‍करी करने वाले गिरोहों की सक्रियता भी बढ रही हैा इस दौरान यह गिरोह अपने परिवार वालों से बिछडे और गरीब परिवार के बच्‍चों को निशाना बनाते हैं इसके अलावा गरीबी के चलते कई मां बाप अपनी बेटी की शादी किसी ऐसे आदमी के साथ कर देते हैं जिसका उनकी बेटी के उम्र से कोई ताल मेल नहीं होता आजकल तो रूपयों के चक्‍कर में आकर गरीब मां बाप अपनी नाबालिक बेटी को बूढों के हाथ सौंप देते हैं उन बच्‍चों की तस्‍करी की आशंका ज्‍यादा बढ जाती है जिनके जन्‍म का रजिस्‍ट्रेशन नहीं हुआ होता है बच्‍चों की कानून पैहचान न होने से उनकी तस्‍करी आसान हो जाती है ऐसी स्थित में लापता बच्‍चों का पता लगाना टेढी खीर साबित हो जाता है तस्‍करी और लापता बच्‍चों के बीच गहरे रिश्‍ते का खुलासा एनएचआरसी की रिसर्च रिपोर्ट भी करती है जिसमें कहा गया है कि भारत में हर साल तीस हजार से ज्‍यादा बच्‍चों के लापता होने के मामले दर्ज होते हैं जिनमें से एक तिहाई का पता नहीं चलता है जिनमें से एक तिहाई का पता नहीं चलता है। तस्करी के बाद ज्यादातर बच्चों का इस्तेमाल खदानों , बागनों रसायनिक और कीटनाशक, करखानों से लेकर खतरनाक मशीनों को चलाने के लिए किया जाता है। कई बार ऐसा देखा जाता है बच्चों को बंदुआ मजदूर बनाने के लिए उनके परिवार वलों को एडवांस दिया जाता है जिसका व्‍याज तेजी से बढता है जिसके हिसाब से बच्‍चों को उनसे छुडा पाना मुश्किल हो जाता है ा जब कोई बच्‍चा उनके काम का नहीं होता है तो अपने पैसे को शूल करने के लिए अंग निकालने भीख मंगवाने जैसा धृणीत कार्य कराया जाता है नाजायज तौर पर गोद लेने से भी बच्‍चों के तस्‍करी को बढावा मिल रहा है बाल तस्‍करी की हर अवस्‍था में हिंसा का सिलसिला जारी रहता है जिनमें जो बच्‍चें फसते हैं वो अपने जीवन के आखिरी मुकाम तक गुलामी का जीवन जीते हैं आज तस्‍करी में ज्‍यादातर बच्‍चे भरोसे मंद आदमियों द्वारा धोखा दिऐ जाने के शिकार होते हैं। यह भी अजीब विड़बना है कि ये बच्चे अपनी सुरक्षा, भोजन और आवास के लिऐ शेषण करने वालों के उपर ही निभZर रहते हैं। यह बच्चे तस्करी करने वालों से लेकर काम करने वाले दलाल और ग्राहकों तक सभी के शेषण का शिकार होते हैं। जिसके चलते उनमें हताशा बुरे सपने आना नीद नहीं आने जैसे विकार पैदा होते हैं। तब कुछ बच्चे नशे की लत में पड़ जाते हैं और कुछ अत्महत्या की कोशिश करते हैं । बाल तसकरी से जुडे सही और पर्याप्‍त आंकडे जमा कर पाना बहुत मुश्किल है। ऐसा इसलिए क्योंकि तस्करी के तार अंतरराट्रीय और संगठित अपराध की बहुत बडी+ दुनिया से जुडे+ हैं। यह शारीरिक और यौन शेषण के घने जालों से जकड़ी एक ऐसी दुनिया है जिनको लेकर सटीक नतीजे तक पहुंच पाना भी मुश्किल है। कई बार आकडो+ में ऐसे लोग छूट जाते हैं जिनकी तस्करी देश के भीतर हो रही है। फिर यह भी हैकि कई जगहों पर तस्करी के शिकार लोंगो की आयु या लिंग का जिक्र नहीं मिलता । दुनिया भर में बच्चों की तस्करी सबसे फायदेमंद और तेजी से उभरता काला धंधा हैं। क्योंकि एक तो इसमें न के बराबर लागत है और फिर नशा या हथियारों की तस्करी के मुकाबले खतरा भी कम है। इस धंधे में बच्चे कीमती सामानों में बदलते हैं और मांग पूतिZ के सि़दान्त के हिसाब से देश विदेश हैं। तस्करी में ऐसा जरूरी नहीं हैं। कि बच्चों को अंतरराट्रीय सीमा के बाहर ले जाया जाए । एक बड़ी संख्या में बच्चों की तस्करी गांवों से शहरों में भी होती है। इसके अलावा पर्यटन से जुड़ी मांग और मौसमी पलायन के चलते भी तस्करी को बढ़ावा मिलता है। देश के भीतर या बाहर दोनो ही प्रकार से बच्चो की तस्करी भयावह अपराध है इसलिए बच्चों की तस्करी रोकने के लिए न्याय का अधिकार देने वाले कानून की जरूरत हैं।बच्चों की तस्करी से जुड़ी सभी गतिविधियों पर लोगों और एजेंसियों पर फौजदारी कानून के तरह कार्रवाई हो। इसके अलावा शेषण से संरक्षण देने वाला ऐसा कानून हो जो बच्चों की तस्करी रोकने के लिए सीधे असर कर सके ं। इनमे पलायन बाल दुरूपयोग और पारिवारिक हिंसा से जुड़े कानून आते हैं। यहां एक और बात स्पट है कि बच्चों की तस्करी रोकने के कानूनी उपाय तब तक बेमतलब रहेंगे जब तक कानून को इस्तेमाल करने और उनकी निगरानी करने की उचित व्यवस्था नहीं रहेगी । साथ ही साथ तस्करी के शिकार बच्चों को तेजी से पहचानने के लिए कारगर तरीके बनाने और उन्हें अपनाने की भी जरूरत हैं।

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