
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले की खूबसूरत वादियों में सामान्य शिक्षक के पुत्र के रूप में पैदा हुए शिक्षक व साहित्यकार ओम प्रकाश त्रिपाठी ग्रामीण परिवेश में रह कर उच्च शिक्षा प्राप्त कर 27-1-1973 से बेसिक शिक्षा परिषद के अंतर्गत प्राथमिक विधालय में शिक्षण कार्यों द्वारा समाज के नई पीढी को एक नई दिशा दिखाने की कवायत शुरू की कुछ वर्षों बाद ही वे प्रमोट होकर जूनियर हाईस्कूल में अपने ज्ञान की गंगा बहाने लगे शैक्षिक कार्यो के साथ साथ राष्ट्रीय कार्यों मे सक्रियता, शैक्षिक व सांस्क़तिक संगोष्ठियों में सहभागिता के साथ मंच संचालन उनकी प्रतिभा की गाथा गाता है त्रिपाठी जी सोनभद्र के पहले शिक्षक व साहित्यकार है जो जनपद तथा राज्य स्तर पर भारत सरकार के नवीन नीतियों के मास्टर ट्रेनर रहे हैं त्रिपाठी जी को कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है जो निरंतर जारी है जिन पुरस्कारों से इनको सम्मानित किया गया है उनमें राष्ट्रपति एवं राज्य पाल द्वारा सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का पुरस्कार, कैमूर भूषण एवं सोनरत्न प्रमुख है साथ ही वे अन्य संस्थाओं द्वारा साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न उपाधियों व शब्दश्री सम्मान से भी नवाजे गए हैं यदि इनके अग्रलेखों की बात करें तो कई पत्र पत्रिकाओं में उनके लेखों का प्रकाशन हुआ है त्रिपाठी जी के दिलों दिमाग में प्राकृतिक सुंदरता कुछ इस कदर समाई है कि लगता है मानों प्राकृति उनकी संगिनी हो 01 जून 1951 को पैदा हुए त्रिपाठी जी को प्रक़ति ने इस कदर सम्मोहित किया कि उन्होंनें पर्यावरणीय जीवन पर एक पुस्तक ही लिख दी पुस्तक लिखने के क्रम में उन्होंने दो और पुस्तकों को अस्तित्व दिया बहु मुखी प्रतिभा व आकर्षक व्यक्तित्व के धनी तिवारी जी बहुत जल्द ही लोगों से प्रभावित हो जाते हैं
प्रस्तुत है शिक्षक व साहित्यकार ओम प्रकाश त्रिपाठी जी से आशिष त्रिपाठी के बातचीत के कुछ अंश
उत्तर- शिक्षण विधा में अध्यात्म से प्रभावित होकर देश के सभी तीर्थाटन के बाद अनेक सांस्क़तिक पर्यावरणीय भौगोलिक तथा ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी से विचारों की आंधी ने लेखन की ओर उन्मुख किया अनेक साहित्यों का गम्भीर चिन्तन व मनन करने के बाद स्वयं में नवीन धारा को सूत्रपात हुआ और परिणामत- साहित्य सफर की एक दशक से शुरूआत जो जीवनान्त तक अविरल चलते रहने की आकांक्षा में हैा
उत्तर- साहित्य व शिक्षा समाज को दिशा देने वाली रही है जब देश में अस्थिरता एवं विभिन्नता तथा नवीनता ने अपना ताना बाना फैलाया तो उसमें सृजनात्मकता संचारित करने का संपूर्ण श्रेण शिक्षा व साहित्य को जाता है आज कुछ ऐसे भी साहित्य हैं जो समाज मे मनोरंजन एवं सुखानुभूति की दिशा में सक्रिय हैं जिससे समाज की पतनशीलता दृष्टिगोचर हो रही है जो देश में अनेक संकीर्ण विचारधारा को जन्म देने में अपनी अहम भूमिका निभा रही हैा यदि ऐसे साहित्यों को हमारा समाजिक समुदाय उखाड फेके तो सृजनात्मक विचारधारा के साहित्य से मानसिक परिवर्तन वाले विचारों के भाव की गंगा बहने लगेगी
उत्तर- जन्मोपरांत भारत के अत्यन्त पिछडे हुए क्षेत्र में जीवन यापन के साथ साथ अध्ययन की अवस्था को पार करते ही बच्चों की तोतली भाषा तथा उनकी सृजनात्मक कौशलता के मानवीय मूल्यों के आधार पर अपने ज्ञान को उनके ज्ञान से जोड्ने का सुअवसर मुझे शिक्षण कार्यों से प्राप्त हुआा बच्चों तथा उनके अभिभावकों का प्रेम तथा आलोचको द्वारा विषय गत प्रश्न चिन्हों पर चिंतन कर आत्मशुद्विकरण एवं पिता जी द्वारा बच्चों को वास्तविक स्नेह ,दुलार ,प्यार देखकर उज्ज्वल जीवन की कल्पना में कर्तवयनिष्ठा का भाव मुझे जिस विधा में डुबो दिया उसे आज का परिवेश प्रभावित नहीं कर पा रहा है
उत्तर- साहित्य और मीडिया दोनों देश के अन्तिम मानव उत्थान उसके दुख दर्द की कहानी तथा उसके जीवन शैली को दिशा देने वाले कारक हैं आदिम सभ्यता के विकास की पुंजे प्रसारित करने का काम साहित्य और मीडिया ने किया है जितने भी साहित्यकार थे अधिकांश पत्रकार भी थे समाज के आवश्यकतानुरूप साहित्य के आवश्यक एंव परिमार्जित रूपों के प्रकाशन से मीडिया ने एक ऊर्जा संचारित की है जो आज अपने रास्ते में बदलाव की ओर अग्रसर है जिससे समाज असहाय और दिशा हीन हो गया हैा वर्तमान समय में आवश्यकता है अश्लील साहित्य पर रोक की, गंभीर चिंतन की, समाजोपयोगी साधनों की आज भी जो समाचारों का रूप है उसमें साहित्यिक विधा को महत्व प्रदान किया जाय तो हमारी गौरवशाली परम्परा की मीनारें विश्व में कीर्तिमान स्थापित करेंगीा
प्रशन- आपके विचारों में पुरस्कारों की क्या अहमियत है
उत्तर- पुरस्कार किसी भी कार्य एंव विकास के लिए उत्प्रेरक होते हैं पुरस्कारों की पात्रता घनघोर छानबीन एवं उत्कृष्टता की पराकाष्ठा का परिणाम होती है इससे जहां एक ओर संबंधित पा्त्र व्यक्ति में क्रियाशीलता एवं समाज सेवा अथवा राष्ट्रीय चिन्तन में अभिवृध्रि होती है वही उसके सम्मान से क्षेत्र समुदाय, जनपद व राज्य गौरवान्वित होता है जिस प्रकार बहुतायत संख्या में मछलियां जल को उतनी स्वच्छता और निर्मलता नहीं प्रदान कर पातीं जितनी कि एक सबसे छोटी मछली सड कर दुर्गंध उत्पन्न कर डालती है उसी प्रकार कही पात्रता चयन में शिथिलता या निजी स्वार्थों की परिधि का प्रबल प्रभाव होता है वहां यही सम्मानित करने वाला पुरस्कार स्वयं में अपमानित हो जाता है जिससे सृजनात्मकता एवं विशिष्टता से परिपूर्ण व्यक्ति भी उस कलंक से बचने हेतु दूरी बना लेता है जहां तक मेरी राय है पुरस्कार सृजनशीलता में चार चांद लगाने वाला प्रबल कारक है
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