
मासूमों के शोषण और उनकी तस्करी की घटनांए वर्तमान समय में इतनी ज्यादा हो चुकी हैं कि ये बात अब सुनने में साधारण लगने लगी हैं । मासूमों का शोषण और उसकी रूप रेखा महानगरों के चौंराहों ,क्र्रासिंगों आदि भीड़. भाड़ वाले स्थान पर भीख मांगते कम उम्र के बच्चों के समूहों को देख कर आसानी से तैयार किया जा सकता है जहां शोषित बच्चो का समूह अधिक होता है। जो अपना पेट भरने के लिए शहर के फुटपाथों पर जूते कार चमकाते नजर आते है तो कुछ फूल गुलदस्ता चाकलेट आदि बेचते नजर आते है। जब उससे भी उनका काम नही चलता तो अपने आपको ही बेचने के लिए विवश हो जाते हैं ना जाने ये बच्चे कितनी बार कितनो के हाथ बिकते हैं जिसका आंकड़ा जुटा पाना भी मुश्किल होता है महानगरों में जीवनयापन के लिए आए मासूम इस कदर शोषण का शिकार हो जाते है कि अपने परिजनों से मिलने की उनकी आस आस ही रह जाती है अगर इन बच्चों पर गौर किया जाए तो इनकी तस्करी भी जोरों पर है। संभवत: इसी का नतीजा है कि महानगरों में महज साल भर के भीतर इतने बच्चे लापता हो चुके है जिनका आंकलन कर पाना मुश्किल ही नही नामुमकिन सा लगता है। बच्चों की तस्करी की ओर प्रकाश डालते हुए एक श्रम संगठन ने सन् 2002 में एक रिपोटZ जारी की थी जिसमें इस बात का उल्लेख किया गया था कि विवभर में तकरीबन 12 लाख से ज्यादा बच्चों की तस्करी हुइZ है। श्रम संगठनों का अनुमान है कि इन बच्चों की तस्करी से अवैध रूप से तकरीबन 10 अरब डाWलर का सालाना व्यापार जोरों से किया जा रहा है। इसी श्रम संगठन ने वर्ष 2000 में बाल मजदुरी से जुड़े आंकड़ों से अनुमान लगाया गया है कि करीब 18 लाख बच्चों का सेक्स इंडस्ट्रीज में शेषण हो रहा है इस प्रकार के शोषण में खासतौर से लड़कियों की तस्करी विभिन्न यौन गतिविधियों के लिए कि जाती है इसी अधार पर श्रम संगठन द्वारा यह भी अनुमान लगाया जा रहा है। कि घरेलू मजदूरी में भी लड़कियों की संख्या सबसे अधिक होती है ऐसे बच्चों की तस्करी करने के लिए उनके परिवार वालों को अच्छी पढाई लिखाई या नौकरी का झांसा दिया जाता हैा