Tuesday, October 19, 2010

मासूमों के शोषण व तस्‍करी का खौफनाक मंजर


मासूमों के शोषण और उनकी तस्करी की घटनांए वर्तमान समय में इतनी ज्यादा हो चुकी हैं कि ये बात अब सुनने में साधारण लगने लगी हैं । मासूमों का शोषण और उसकी रूप रेखा महानगरों के चौंराहों ,क्र्रासिंगों आदि भीड़. भाड़ वाले स्थान पर भीख मांगते कम उम्र के बच्चों के समूहों को देख कर आसानी से तैयार किया जा सकता है जहां शोषित बच्चो का समूह अधिक होता है। जो अपना पेट भरने के लिए शहर के फुटपाथों पर जूते कार चमकाते नजर आते है तो कुछ फूल गुलदस्ता चाकलेट आदि बेचते नजर आते है। जब उससे भी उनका काम नही चलता तो अपने आपको ही बेचने के लिए विवश हो जाते हैं ना जाने ये बच्चे कितनी बार कितनो के हाथ बिकते हैं जिसका आंकड़ा जुटा पाना भी मुश्किल होता है महानगरों में जीवनयापन के लिए आए मासूम इस कदर शोषण का शिकार हो जाते है कि अपने परिजनों से मिलने की उनकी आस आस ही रह जाती है अगर इन बच्चों पर गौर किया जाए तो इनकी तस्करी भी जोरों पर है। संभवत: इसी का नतीजा है कि महानगरों में महज साल भर के भीतर इतने बच्चे लापता हो चुके है जिनका आंकलन कर पाना मुश्किल ही नही नामुमकिन सा लगता है। बच्चों की तस्करी की ओर प्रकाश डालते हुए एक श्रम संगठन ने सन् 2002 में एक रिपोटZ जारी की थी जिसमें इस बात का उल्लेख किया गया था कि विवभर में तकरीबन 12 लाख से ज्यादा बच्चों की तस्करी हुइZ है। श्रम संगठनों का अनुमान है कि इन बच्चों की तस्करी से अवैध रूप से तकरीबन 10 अरब डाWलर का सालाना व्यापार जोरों से किया जा रहा है। इसी श्रम संगठन ने वर्ष 2000 में बाल मजदुरी से जुड़े आंकड़ों से अनुमान लगाया गया है कि करीब 18 लाख बच्चों का सेक्स इंडस्ट्रीज में शेषण हो रहा है इस प्रकार के शोषण में खासतौर से लड़कियों की तस्करी विभिन्न यौन गतिविधियों के लिए कि जाती है इसी अधार पर श्रम संगठन द्वारा यह भी अनुमान लगाया जा रहा है। कि घरेलू मजदूरी में भी लड़कियों की संख्या सबसे अधिक होती है ऐसे बच्‍चों की तस्‍करी करने के लिए उनके परिवार वालों को अच्‍छी पढाई लिखाई या नौकरी का झांसा दिया जाता हैा

Thursday, October 7, 2010

बहुमुखी प्रतिभा के धनी ओम प्रकाश त्रिपाठी


उत्‍तर प्रदेश के सोनभद्र जिले की खूबसूरत वादियों में सामान्‍य शिक्षक के पुत्र के रूप में पैदा हुए शिक्षक व साहित्‍यकार ओम प्रकाश त्रिपाठी ग्रामीण परिवेश में रह कर उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त कर 27-1-1973 से बेसिक शिक्षा परिषद के अंतर्गत प्राथमिक विधालय में शिक्षण कार्यों द्वारा समाज के नई पीढी को एक नई दिशा दिखाने की कवायत शुरू की कुछ वर्षों बाद ही वे प्रमोट होकर जूनियर हाईस्‍कूल में अपने ज्ञान की गंगा बहाने लगे शैक्षिक कार्यो के साथ साथ राष्‍ट्रीय कार्यों मे सक्रियता, शैक्षिक व सांस्‍क़तिक संगोष्ठियों में सहभागिता के साथ मंच संचालन उनकी प्रतिभा की गाथा गाता है त्रिपाठी जी सोनभद्र के पहले शिक्षक व साहित्‍यकार है जो जनपद तथा राज्‍य स्‍तर पर भारत सरकार के नवीन नीतियों के मास्‍टर ट्रेनर रहे हैं त्रिपाठी जी को कई पुरस्‍कारों से भी सम्‍मानित किया गया है जो निरंतर जारी है जिन पुरस्‍कारों से इनको सम्‍मानित किया गया है उनमें राष्‍ट्रपति एवं राज्‍य पाल द्वारा सर्वश्रेष्‍ठ शिक्षक का पुरस्‍कार, कैमूर भूषण एवं सोनरत्‍न प्रमुख है साथ ही वे अन्‍य संस्‍थाओं द्वारा साहित्‍य के क्षेत्र में विभिन्‍न उपाधियों व शब्‍दश्री सम्‍मान से भी नवाजे गए हैं य‍दि इनके अग्रलेखों की बात करें तो कई पत्र पत्रिकाओं में उनके लेखों का प्रकाशन हुआ है त्रिपाठी जी के दिलों दिमाग में प्राकृतिक सुंदरता कुछ इस कदर समाई है कि लगता है मानों प्राकृति उनकी संगिनी हो 01 जून 1951 को पैदा हुए त्रिपाठी जी को प्रक़ति ने इस कदर सम्‍मोहित किया कि उन्‍होंनें पर्याव‍रणीय जीवन पर एक पुस्‍तक ही लिख दी पुस्‍तक लिखने के क्रम में उन्‍होंने दो और पुस्‍तकों को अस्तित्‍व दिया बहु मुखी प्रतिभा व आकर्षक व्‍यक्तित्‍व के धनी तिवारी जी बहुत जल्‍द ही लोगों से प्रभावित हो जाते हैं

Saturday, October 2, 2010

पंडितों की कमाई का बदनुमा दाग बाल-विवाह



एक भले सभ्य समाज के लिए बाल-विवाह घृणित कार्य है जिसके दुष्‍परिणामों के बारे में जितनी चर्चा कर ली जाय वो कम होगी। बाल-विवाह दो ऐसे अबोध जीवों को गृहस्थी के चक्की में पीसने की मशीन है ि‍जन्‍हे अपने अस्तित्व का भी बोध नहीं होता बाल-विवाह की कल्पना मात्र से ही रूह कांप जाती है लेकिन आज भी हमारे समाज में बाल-विवाह कर अबोध बच्चों की बली चढ़ाने का काम जारी है।