About Me

दरिया व पहाड़ो की मस्ती मुझे विरासत में मिली है। गंगा किनारे बसे शहर बनारस के पास मिर्ज़ापुर ज़िले के एक गावं बरेवां से पुरखों ने इस सफ़र की शुरूआत की। जो बहते बहते पहुंच गए सोन नदी के किनारे बसे राबर्ट्सगंज में । फिर वो वहीं के होकर रह गए। लेकिन मैंने रूकना कभी सीखा नहीं। बहते रहना- मेरी फितरत है, फक़ीरों की तरह। गंगा सागर में मिलने से बेहतर युमना किनारे बसे शहर दिल्ली में धुनी रमाना बेहतर समझा। जीने के लिए कलम का सहारा लिया। ज़माने को बदलना है- इस जज़्बे के साथ जूते घिस घिस कर अख़बारों और पत्र पत्रिकाओं में कलम घिसने की ठानी । ज़माना बदला हो या नहीं- ये पता नहीं। लेकिन इन दो साल में मैं ज़रूर बदल गया हूँ । बदलाव की शुरूआत हुई - अख़बारों की दुनिया में कदम रखने से । इस पत्रकारिता की दुनिया ने बार बार हाथ झटक दिया। लेकिन अब मैं थोड़ा डीठ हो चुका हूं। ख़ाल मोटी होने लगी है । पत्रकारिता और मेरे बीच मियां - बीवी जैसा रिश्ता क़ायम होने लगा है । कोशिश कर रहा हूं नाग नागिन के इस दौर में सार्थक पत्रकारिता करने की। कौन कहता है कि आसमान में सुराख़ नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। बस हव्शाला बुलंद होने की देरी है

Monday, January 18, 2010

नकली दिमाग देगा आप को आराम



भेजा फ्राई हो जाए तो फिकर नॉट... अपने ब्रेन को आराम दीजिए और नकली दिमाग से काम लीजिए! शायद ये आ असली दिमाग से ज्यादा स्मार्ट हो। साइंटिस्टों का तो यही दावा है। स्विस साइंटिस्टों की एक टीम आर्टिफिशल माइंड बनाने में जुटी है और उनका दावा है कि अगले आठ साल में यानी 2018 तक वे नकली दिमाग तैयार कर लेंगे। इस टीम के लीडर प्रोफेसर हेनरी मारक्रम का दावा है कि यह दुनिया का पहला नकली इंटेलिजेंट और एक्टिव माइंड होगा। ब्रिटिश अखबार 'डेली मेल' में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, इसे सोने, कॉपर और सिलिकन से बनाया जा रहा है।
लॉन स्थित इकोल पॉलिटेक्नीक के ब्रेन माइंड इंस्टिट्यूट में प्रोफेसर मारक्रम के मुताबिक, नकली दिमाग के जरिए पागलपन पर फतह हासिल की जा सकेगी, इंसानी समझ और सीखने की ताकत को बढ़ाया जा सकेगा। मारक्रम का यह ब्लू ब्रेन दिमाग की कंप्यूटराइज्ड कॉपी तैयार करेगा। इसकी शुरुआत चूहे के दिमाग से की जा रही है और धीरे-धीरे इंसानी दिमाग की कॉपी कर नकली दिमाग तैयार होगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि कंप्यूटर के जरिए तैयार किया गया यह दिमाग सोच सकेगा, तर्क कर सकेगा, अपनी इच्छा जाहिर कर सकेगा। और तो और, प्यार, गुस्सा, दर्द, दुख और खुशी जैसी भावनाओं को महसूस भी कर सकेगा। मारक्रम कहते हैं कि 2018 तक हमें इसे तैयार करने में कामयाबी मिल जाएगी। इसके लिए बहुत पैसे की जरूरत होगी, जो हमें अभी से मिलने लगा है। दुनिया के कई साइंटिस्ट अपने रिसोर्स लेकर मेरे साथ इस काम में जुट गए हैं।

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