Tuesday, August 17, 2010

पिया मेंहदी लिआय दा मोतीझील से

बरसात की बूंदों से पूरी तरह सराबोर विन्ध्याचल की गलियों में पैदल चल रही 70 साल की शांति मिश्र गली के कोने में बने एक चबूतरे की और इशारा करती हैं- “यहाँ होते थे कजरी के दंगल सारी–सारी रात, एक से बढ़कर एक अखाड़े, जिसने सुनने वालों को बाँध लिया वो जीत गया.”